गीत/नवगीत

गीत – प्रेम प्रगाढ़ हुआ प्रिय तब से

प्रेम प्रगाढ़ हुआ प्रिय तबसे ,
जबसे नैनों में सच देखा ।
देखा मैनें अपनी सूरत
तेरे हाथों में निज रेखा ।।
ले चल मुझे साथ ही साथी ,
बिछड़े जो हम मर जायेंगे।
तेरे साये में हमसाया
मिलकर जीवन तर जायेंगे।
डरते है मत मिले जुदाई
ऐसी हो मत  किस्मत  लेखा ।।
प्रेम प्रगाढ़ हुआ पिय तबसे
जबसे नैनो में सच देखा ।।
ढूँढ़ रही हूँ जिसको अपने
मन के भीतर के दर्पण में ।
दिखता है वह मुझको हरदम
पावन देव पुष्प अर्पण में ।
उसकी खुश्बू धूप आरती
मूरत में है दीपक रेखा ।।
प्रेम प्रगाढ़ हुआ पिय तब से
जब से नैनो में सच देखा ।
निर्धारित है पूर्व जन्म से
मैं ही तेरी तू मेरा है ।
कहती हैं धड़कन की धुन यह
मिलन नसीबों का फेरा है ।
भाग लो चाहे बात से जितना
मत करना लेकिन अनदेखा ।
प्रेम प्रगाढ़ हुआ प्रिय तबसे,
जबसे  नैनों मे सच देखा ।।
— साधना सिंह 

साधना सिंह

मै साधना सिंह, युपी के एक शहर गोरखपुर से हु । लिखने का शौक कॉलेज से ही था । मै किसी भी विधा से अनभिज्ञ हु बस अपने एहसास कागज पर उतार देती हु । कुछ पंक्तियो मे - छंदमुक्त हो या छंदबध मुझे क्या पता ये पंक्तिया बस एहसास है तुम्हारे होने का तुम्हे खोने का कोई एहसास जब जेहन मे संवरता है वही शब्द बन कर कागज पर निखरता है । धन्यवाद :)