आल्हा छंद : नारी का जग पर उपकार
साहस शौर्य शक्ति की प्रतिमा, नारी का जग पर उपकार
दुर्गा लक्ष्मी राजपुतानी, की गाथाये कहें पुकार
जग को जीवन देने वाली, जिससे है जग में पहचान
त्याग तपस्या की मूरत सी, नारी जग का है आधार
लक्ष्मी बाई, दुर्गा बन कर, करे शत्रुओं का संहार
विकट परिस्थितियाँ हों चाहें, करती नहीं हार स्वीकार
मानव की पूर्णता प्रकृति से, बतलाते है वेद पुराण
करुणा ममता प्रीत हृदय में, सहज बरसता प्रेम दुलार
धन-दौलत का लोभ न करती, तनिक नही करती अभिमान
दुख सह कर हँसती रहती है, प्रेम पगा रखती व्यवहार
मिटती रही कोख में नारी, कभी बन गया काल दहेज
नर को जीवन देती है जो, मत कर तू उसको लाचार
माँ की पूजा करने से ही, सच में खुश होते भगवान
श्री हरि भी माँ की ममता के, ऋणी हुए लेकर अवतार
दुर्गा क्षमा शिवा धात्री है, देती हर मुश्किल से त्राण
आँच नहीं आने देती है, सीने पर सहती हर वार
— मंजूषा श्रीवास्तव ‘मृदुल’