कविता

सत्य की तलवार

रखकर अपनों को धोखे में
यहां चैन से कोई नहीं सोता
पावन दिल को मलिनता का
कभी कोई भय नहीं होता
गिरकर उठना, चलकर गिरना
जीवन यही है बतलाता
बिना चुभाए सुई कपड़े में
उसका रूप नहीं निखरता
बने हो जिस भी मिट्टी के
सामने आकर वार करो
यूँ पीठ पीछे छुपकर दबके
न कायरता का सत्कार करो
जो कहनी वो करनी
हर किसी के बस की बात नहीं
चार शब्द वाहवाही के बोल में
सत्यता की तलवार नहीं
— सौम्या अग्रवाल

सौम्या अग्रवाल

अम्बाह, मुरैना (म.प्र.)