झुकता देख माथ
चमचों को आज तक भी, समझ सके ना आप
दो मुँह वाला है यही, इक जहरीला साँप
प्यार ना पा सकते कभी, खुद चमचों से यार
डूबा देता आपको, जाकरके मझधार
हर युग में चमचे रहे, फैला करके पाँव
बचा नहीं आज तक भी, इसी से शहर गाँव
चमचे ने पकड़ा यहाँ, जिस आका का हाथ
फिर अंत तक छोड़ा नहीं, उसने उसका साथ
वो आका के बीच में, खींचता ना लकीर
करें है पहले अपनी, दूर सभी ही पीर
अपने आका का सदा, देता चमचा साथ
दिन-रात आगे उसके, झुकता देख माथ
चमचों के प्रति रखे जी, आप अच्छे विचार
बुराई दिखे आपमें, करता ना स्वीकार
अपने आका का रखें, चमचे सदैव ध्यान
उसके खिलाफ बात हो, रखता सतर्क कान
चमचों का चलता यहाँ, अपना ही कानून
इसलिए बढ़ाके रखता, खुद के वो नाखून
अपने हित हेतु सदा, रखते चमचे लोग
फिर करें समय देखकर, उसका ही उपयोग
— रमेश मनोहरा