मुखौटे
चेहरों पे मुखौटे हैं ऐ यार संभलना
हर कदम पे धोखे हैं दिलदार संभलना
माना के गुलिस्तां है गुलों से भरा हुआ
होते हैं कभी साथ में ये ख़ार संभलना
बंधते हैं यहां रिश्ते मतलब की डोर से
खो जाए न कहीं ये ऐतबार संभलना
नकली है ये शाइश्तगी ऐ दिल जरा ठहर
हो जाए न मुनाफ़िक से प्यार संभलना
पतझड़ के नज़ारों को दरख़्तों पे देख के
आती नहीं है मौसम-ए-बहार संभलना
— पुष्पा “स्वाती”