गीतिका/ग़ज़ल

मुखौटे

चेहरों पे मुखौटे हैं ऐ यार संभलना
हर कदम पे धोखे हैं दिलदार संभलना
माना के गुलिस्तां है गुलों से भरा हुआ
होते हैं कभी साथ में ये ख़ार संभलना
बंधते हैं यहां रिश्ते मतलब की डोर से
खो जाए न कहीं ये ऐतबार संभलना
नकली है ये शाइश्तगी ऐ दिल जरा ठहर
हो जाए न मुनाफ़िक से प्यार संभलना
पतझड़ के नज़ारों को दरख़्तों पे देख के
आती नहीं है मौसम-ए-बहार संभलना
— पुष्पा “स्वाती” 

*पुष्पा अवस्थी "स्वाती"

एम,ए ,( हिंदी) साहित्य रत्न मो० नं० 83560 72460 [email protected] प्रकाशित पुस्तकें - भूली बिसरी यादें ( गजल गीत कविता संग्रह) तपती दोपहर के साए (गज़ल संग्रह) काव्य क्षेत्र में आपको वर्तमान अंकुर अखबार की, वर्तमान काव्य अंकुर ग्रुप द्वारा, केन्द्रीय संस्कृति मंत्री श्री के कर कमलों से काव्य रश्मि सम्मान से दिल्ली में नवाजा जा चुका है