गज़ल
छोड़कर अपना मैं और तुम आओ हम बनाते हैं
मिला कर सारे सुर कोई नई सरगम बनाते हैं
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उनकी नफरतों का प्यार से देकर जवाब उनको
देखो दुश्मनों को कैसे हम हमदम बनाते हैं
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रंग कर दोस्ती के रंग में ये कपड़ा भरोसे का
लहराए जो सदियों तक वैसा परचम बनाते हैं
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यहाँ हर कोई डूबा है अपनी-अपनी फिक्रों में
किसी के दर्द कब दिल को हमारे नम बनाते हैं
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वही इंसान मंज़िल पर पहुंचते हैं यहाँ पर जो
मेहनत ज्यादा करते हैं, बातें कम बनाते हैं
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आभार सहित :- भरत मल्होत्रा।