गीत
दिन को दिन लिख दूं मैं, लेकिन
किस किस को अंधियारा लिख दूं
एक अमावस मन मे बैठी
बनी कामनाओं की थाती
एक अमावस घर मे बैठी
कूट रही मदमोह से छाती
महाविनाश के तट पर आकर
युद्ध बिगुल की धारा लिख दूं
दिन को दिन लिख दूं मैं, लेकिन
किस किस को अंधियारा लिख दूं
नए थांग झड़ते प्रभात में
पंछी रोते दिए सुनाई
मैंने घुटती घोर निशा में
मरते देखी अपनी परछाई
सोते जगते विस्मय देखे
मृत्यु क्षितिज किनारा लिख दूं
दिन को दिन लिख दूं मैं, लेकिन
किस किसको अंधियारा लिख दूं
ऐसे ही जब अर्जुन ने पूछा
जीत गए या हार गए हम
कहाँ कृष्ण के मुख से निकला
युद्ध तिमिर के पार गए हम
कुरुक्षेत्र हर घर तक फैला
किस गीता का नारा लिख दूं
दिन को दिन लिख दूं मैं, लेकिन
किस किस को अंधियारा लिख दूं
— सौरभ कुमार दुबे