गीत/नवगीत

गीत

दिन को दिन लिख दूं मैं, लेकिन
किस किस को अंधियारा लिख दूं

एक अमावस मन मे बैठी
बनी कामनाओं की थाती
एक अमावस घर मे बैठी
कूट रही मदमोह से छाती
महाविनाश के तट पर आकर
युद्ध बिगुल की धारा लिख दूं
दिन को दिन लिख दूं मैं, लेकिन
किस किस को अंधियारा लिख दूं

नए थांग झड़ते प्रभात में
पंछी रोते दिए सुनाई
मैंने घुटती घोर निशा में
मरते देखी अपनी परछाई
सोते जगते विस्मय देखे
मृत्यु क्षितिज किनारा लिख दूं
दिन को दिन लिख दूं मैं, लेकिन
किस किसको अंधियारा लिख दूं

ऐसे ही जब अर्जुन ने पूछा
जीत गए या हार गए हम
कहाँ कृष्ण के मुख से निकला
युद्ध तिमिर के पार गए हम
कुरुक्षेत्र हर घर तक फैला
किस गीता का नारा लिख दूं
दिन को दिन लिख दूं मैं, लेकिन
किस किस को अंधियारा लिख दूं

— सौरभ कुमार दुबे

सौरभ कुमार दुबे

सह सम्पादक- जय विजय!!! मैं, स्वयं का परिचय कैसे दूँ? संसार में स्वयं को जान लेना ही जीवन की सबसे बड़ी क्रांति है, किन्तु भौतिक जगत में मुझे सौरभ कुमार दुबे के नाम से जाना जाता है, कवितायें लिखता हूँ, बचपन की खट्टी मीठी यादों के साथ शब्दों का सफ़र शुरू हुआ जो अबतक निरंतर जारी है, भावना के आँचल में संवेदना की ठंडी हवाओं के बीच शब्दों के पंखों को समेटे से कविता के घोसले में रहना मेरे लिए स्वार्गिक आनंद है, जय विजय पत्रिका वह घरौंदा है जिसने मुझ जैसे चूजे को एक आयाम दिया, लोगों से जुड़ने का, जीवन को और गहराई से समझने का, न केवल साहित्य बल्कि जीवन के हर पहलु पर अपार कोष है जय विजय पत्रिका! मैं एल एल बी का छात्र हूँ, वक्ता हूँ, वाद विवाद प्रतियोगिताओं में स्वयम को परख चुका हूँ, राजनीति विज्ञान की भी पढाई कर रहा हूँ, इसके अतिरिक्त योग पर शोध कर एक "सरल योग दिनचर्या" ई बुक का विमोचन करवा चुका हूँ, साथ ही साथ मेरा ई बुक कविता संग्रह "कांपते अक्षर" भी वर्ष २०१३ में आ चुका है! इसके अतिरिक्त एक शून्य हूँ, शून्य के ही ध्यान में लगा हुआ, रमा हुआ और जीवन के अनुभवों को शब्दों में समेटने का साहस करता मैं... सौरभ कुमार!