मुक्तक/दोहा

दोहे “जीवन देती धूप”

फिर से कुहरा छा गया, आसमान में आज।
आवाजाही थम गयी, पिछड़ गये सब काज।।

खग-मृग, कोयल-काग को, सुख देती है धूप।
उपवन और बसन्त का, यह सवाँरती रूप।।

तेज घटा जब सूर्य का, हुई लुप्त सब धूप।
वृद्धावस्था में कहाँ, यौवन जैसा रूप।।

बिना धूप के निखरता, नहीं किसी का रूप।
जड़, जंगल और जीव को, जीवन देती धूप।।

भँवरा गुनगुन कर रहा, तितली करती नृत्य।
खुश होकर करते सभी, अपने-अपने कृत्य।।

दुनिया एक सराय है, लोग यहाँ महमान।
राह सरल हो जायगी, कम रखना सामान।।

नहीं मान-अपमान की, चिन्ता करना मित्र।
जिसमें तुम रँग भर सको, वही बनाना चित्र।।

राह जटिल कुछ भी नहीं, तज देना अभिमान।
माँगे से मिलता नहीं, दुनिया में सम्मान।।

अनुभव अपने बाँटिए, सुधरेगा परिवेश।
नवयुग को दे दीजिए, जीवन के सन्देश।।

महादेव बन जाइए, करके विष का पान।
धरा और आकाश में, देंगे सब सम्मान।।

धोखा देता जगत में, आकर्षक परिधान।
रहता सत्तर साल में, कोई नहीं जवान।।

प्रजातन्त्र का सिरफिरे, भूल गये हैं अर्थ।
सर्व धर्म समभाव से, बनता देश समर्थ।।

(डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)

*डॉ. रूपचन्द शास्त्री 'मयंक'

एम.ए.(हिन्दी-संस्कृत)। सदस्य - अन्य पिछड़ा वर्ग आयोग,उत्तराखंड सरकार, सन् 2005 से 2008 तक। सन् 1996 से 2004 तक लगातार उच्चारण पत्रिका का सम्पादन। 2011 में "सुख का सूरज", "धरा के रंग", "हँसता गाता बचपन" और "नन्हें सुमन" के नाम से मेरी चार पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। "सम्मान" पाने का तो सौभाग्य ही नहीं मिला। क्योंकि अब तक दूसरों को ही सम्मानित करने में संलग्न हूँ। सम्प्रति इस वर्ष मुझे हिन्दी साहित्य निकेतन परिकल्पना के द्वारा 2010 के श्रेष्ठ उत्सवी गीतकार के रूप में हिन्दी दिवस नई दिल्ली में उत्तराखण्ड के माननीय मुख्यमन्त्री डॉ. रमेश पोखरियाल निशंक द्वारा सम्मानित किया गया है▬ सम्प्रति-अप्रैल 2016 में मेरी दोहावली की दो पुस्तकें "खिली रूप की धूप" और "कदम-कदम पर घास" भी प्रकाशित हुई हैं। -- मेरे बारे में अधिक जानकारी इस लिंक पर भी उपलब्ध है- http://taau.taau.in/2009/06/blog-post_04.html प्रति वर्ष 4 फरवरी को मेरा जन्म-दिन आता है