ग़ज़ल
आपकी यादों के काफिले
आपकी वादों की महफिलें !
यूं ही मचलती रही ख्वाहिशें
रात भर चलते रहे सिलसिले !
आप खफा जो हुए मुझसे
रूठी मुझसे मेरी तक़दीरे !
है हमारे दरम्यान अब रंजिशे
नहीं बची अब कोई उम्मीदे !
मैंने निभाई इश्क की सभी रवायतें
आपने क़ायम किए वफ़ा की मिसालें!
थी हमारे दरम्यान ढेरों चाहते
फिर भी मुकम्मल न ही हमारी मुहब्बते
— विभा कुमारी “नीरजा”