कैसे कह दें नया साल है
सुबह दोपहर शाम वही है
और रातों का वही हाल है
कुछ भी नया नहीं है यारों
कैसे कह दें नया साल है
चारों तरफ सुशासन फैला
जनता त्रस्त मस्त सब नेता
टोपी लगा मुखौटा पहने
जिसका जो मन हो कह देता
गलती पर गलती कर कहते
यह विपक्ष की नई चाल है
कुछ भी नया नहीं है यारों
कैसे कह दे नया साल है
त्याग तपस्या रिश्ते-नाते
खुदगर्जी की भेंट चढ़ गए
हां पर कुछ अपवाद हुए हैं
एक नया आकाश गढ़ गए
बाकी सब का हाल वही है
झरने सूखे फटा जाल है
कुछ भी नया नहीं है यारों
कैसे कह दें नया साल है
फरियादी हर न्याय अभी भी
सच पर अधिकारों का पहरा
उसकी उतनी पीर बड़ी है
जिसका जितना बड़ा ककहरा
लगा रहा है काल ठहाके
और बजाती नियति गाल है
कुछ भी नया नहीं है प्यारे
कैसे कह दें नया साल है
पेंशन हीन वरिष्ठ तरसते
नेता सारे मौज मनाते
EPS 95 क्यों अपनाया
यही सोचकर सब पछताते
2014 से पहले सेवा
निवृत्त होने का मलाल है
सुबह दोपहर शाम वही है
कैसे कह दें नया साल है
— डॉक्टर इंजीनियर मनोज श्रीवास्तव