गीत/नवगीत

गीत “कब दिवस सुहाने आयेंगे”

लो साल पुराना बीत गया।
अब रचो सुखनवर गीत नया।।

फिरकों में है इन्सान बँटा,
कुछ अकस्मात् अटपटा घटा।
अब गली-गाँव का भिक्षुक भी,
अपनी हमदर्दी लिए डटा।
प्रजा-तन्त्र का दानव फिर,
मानवता का घर रीत गया।
अब रचो सुखनवर गीत नया।।

जिसकी कुटिया मंगलकारी,
वीरान हुई उसकी क्यारी।
फाइल में राशन बाँट रहे,
उन्मुक्त हो गये अधिकारी।
वो कैसे धीर धरेंगे अब,
जिनका दुनिया से मीत गया।
अब रचो सुखनवर गीत नया।।

कब दिवस सुहाने आयेंगे,
कब हम नूतन सुख पायेंगे।
कब उपवन अपना महकेगा,
कब भँवरे गुन-गुन गायेंगे।
आशायें दिलाशा देती हैं,
अपना प्यारा संगीत गया।
अब रचो सुखनवर गीत नया।।

नया सूर्य कब चमकेगा,
कब वो अँधियारा हर लेगा।
कब सुख के बादल बरसेंगे,
कब “रूप” देश का दमकेगा।
क्यों पप्पू बाजी जीत गया।
अब रचो सुखनवर गीत नया।।

(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)

*डॉ. रूपचन्द शास्त्री 'मयंक'

एम.ए.(हिन्दी-संस्कृत)। सदस्य - अन्य पिछड़ा वर्ग आयोग,उत्तराखंड सरकार, सन् 2005 से 2008 तक। सन् 1996 से 2004 तक लगातार उच्चारण पत्रिका का सम्पादन। 2011 में "सुख का सूरज", "धरा के रंग", "हँसता गाता बचपन" और "नन्हें सुमन" के नाम से मेरी चार पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। "सम्मान" पाने का तो सौभाग्य ही नहीं मिला। क्योंकि अब तक दूसरों को ही सम्मानित करने में संलग्न हूँ। सम्प्रति इस वर्ष मुझे हिन्दी साहित्य निकेतन परिकल्पना के द्वारा 2010 के श्रेष्ठ उत्सवी गीतकार के रूप में हिन्दी दिवस नई दिल्ली में उत्तराखण्ड के माननीय मुख्यमन्त्री डॉ. रमेश पोखरियाल निशंक द्वारा सम्मानित किया गया है▬ सम्प्रति-अप्रैल 2016 में मेरी दोहावली की दो पुस्तकें "खिली रूप की धूप" और "कदम-कदम पर घास" भी प्रकाशित हुई हैं। -- मेरे बारे में अधिक जानकारी इस लिंक पर भी उपलब्ध है- http://taau.taau.in/2009/06/blog-post_04.html प्रति वर्ष 4 फरवरी को मेरा जन्म-दिन आता है