ऑस्ट्रेलिया में लेखन कौशल दिखातीं रीता कौशल
आपको लेखन का रोग कब और कैसे लगा?
रीता कौशल – जब से पढ़ना-लिखना सीखा तबसे। जहाँ तक मेरी याददाश्त जाती है ऐसा जान पड़ता है कि मैं खिलौनों की दुनिया की सदस्य कभी नहीं थी। हाँ पुस्तकें मुझे होश सम्भालने से ही प्रिय रही हैं व आज भी मेरी सर्वप्रिय मित्र हैं। मैं पुस्तकों के बीच में बेहद ख़ुशी महसूस करती हूँ। मैं ख़रीदकर, माँगकर, दूसरों से अदल-बदल कर हर तरह से पढ़ती रही हूँ। अब जिसे पढ़ने का इतना चस्का हो तो वह लेखन से कैसे अछूता रह सकता है।
लेखन से आप पर कौन सा अच्छा अथवा बुरा प्रभाव पड़ा?
रीता कौशल – मैंने जहाँ विज्ञान, गणित व लेखाकारी जैसे विषयों का ज्ञान जीवन बसर करने के लिए अर्जित किया, वहीं कविता, कहानी, भाषा, साहित्य मेरी आत्मा की खुराक बन कर मेरा जीवन तत्व बने हैं। अब जो चीज जीवन तत्व बन गई है और माँ सरस्वती के आशीर्वाद स्वरूप प्राप्त हुई है उसका कोई बुरा प्रभाव कैसे हो सकता है? लेखन ने मुझे एक अलग पहचान, मान-प्रतिष्ठा दी है। साथ ही समय के सदुपयोग का साधन दिया है। तो कुल मिलाकर सब अच्छा ही अच्छा हुआ है बुरा कुछ नहीं।
क्या आपको लगता है कि लेखन समाज में कुछ बदलाव ला सकता है?
रीता कौशल – जी बिलकुल ला सकता है। जो हम पढ़ते हैं, सोचते हैं उसका सीधा असर हमारी मानसिकता पर पड़ता ही है। और व्यक्ति की सोच से ही समाज की सोच का निर्माण होता है।
आपकी अपनी सबसे प्रिय रचना कौन सी है और क्यों?
रीता कौशल – वैसे तो इस प्रश्न का उत्तर देना किसी भी लेखक के लिए बेहद कठिन होता है। फिर भी आपने पूछा है तो मैं कहूँगी कि हाल ही में प्रकाशित मेरा उपन्यास ‘अरुणिमा’ मेरी सबसे प्रिय रचना है। ये मुझे इसलिए प्रिय है क्योंकि एक तो ये मेरा पहला-पहला उपन्यास है दूसरे इसमें एक अछूते विषय को कलमबद्ध किया गया है जो कि पाठकों के द्वारा खूब सराहा जा रहा है।
आप अपने लेखन से समाज को क्या संदेश देना चाहती हैं?
रीता कौशल – मैंने अपने लेखन के माध्यम से समाज की सोच में बदलाव लाने का प्रयास किया है। हर कहानी में समाज को सकारात्मक दिशा प्रदान करता हुआ दृष्टिकोण देने की कोशिश की है, जो समाज को एकजुट होने का, अच्छी सभ्यता और संस्कृति, अच्छे संस्कार देने का संकेत देता है। मैंने अपने लेखन में अगर समस्या को उठाया है तो उसके समाधान की बात भी अवश्य की है।
साक्षात्कारकर्ता – सुमित प्रताप सिंह