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साहित्य रथ पर सवार अभिमन्यु पाण्डेय आदित्य

दिल्ली के रहने वाले अभिमन्यु पाण्डेय ‘आदित्य’ मूलतः उत्तरप्रदेश, जिसे इन दिनों उत्तम प्रदेश कहा जा रहा है, के प्रतापगढ़ जनपद के रहने वाले हैं। हालाँकि इन्होंने जन्तु विज्ञान से स्नातक की है, किन्तु इनके मन-मस्तिष्क में लेखन के जंतु वास करते हैं जिससे वशीभूत होकर इन्होंने  पत्रकारिता में परास्नातक किया और पूर्ण रूप से लेखन से जुड़ गए। लगभग सोलह वर्ष पत्रकारिता के रथ के रथी की भूमिका का निर्वहन करने के बाद इन्होंने लेखन के जंतुओं की आज्ञा पाकर अपनी प्रथम पुस्तक ‘मुखर होता मौन’ का प्रकाशन करवाया एवं साहित्य के रथ के रथी होने का भी सौभाग्य प्राप्त किया. साहित्य रथ पर सवार हो अभिमन्यु के मन में  साहित्य के प्रति ऐसी श्रद्धा उपजी कि काव्य संग्रह ‘नीलिमा’ के माध्यम से इन्होंने स्वर्गीय लाल सुरेश प्रताप सिंह ‘तृषित’ जी की रचनाओं व उनके लिए लिखे गए महाकवि सुमित्रानंदन पंत के हस्तलिखित पत्र को भी संकलित  कर एक धरोहर के रूप में प्रकाशित करवा डाला। फिलहाल अभिमन्यु दैनिक भास्कर के उत्तराखंड संस्करण के लिए दिल्ली ब्यूरो हेड के रूप में सेवाएं दे रहे हैं। हमने कुछ प्रश्नों के माध्यम से इनकी साहित्यिक यात्रा के विषय में जानने का लघु प्रयास किया है।

• आपको लेखन का रोग कब और कैसे लगा?

अभिमन्यु पाण्डेय ‘आदित्य’ – मेरी नज़र में लेखन को रोग नहीं कहा जा सकता। ये तो माँ शारदा की कृपा होती है, जो अपने आप मिलती है। पढ़ते पढ़ते पता ही चलता, कब आपका लिखने का भी मन होने लगता है। फिर एक दिन आपकी साधना को थोड़ा बल मिलता है और आप कुछ भी लिखते हैं। दुनिया के लिए आपकी पहली रचना चाहे कैसी भी हो, लेकिन आपके अपने लिए वो अद्भुत ही होती है। आप उसे बार-बार पढ़ते हैं और मन ही मन खुश होते हैं। यहीं से आप लेखन के आधीन होना शुरू हो जाते हैं। मेरे साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ। हिंदी कविताएं पढ़ने का शौक था। आठवीं कक्षा तक हिंदी कविताओं में खूब रुचि रही। नौवीं कक्षा तक आते-आते एक दिन कुछ पंक्तियां लिखीं। कई बार पढ़ीं। खूब मजा आ रहा था। ऐसा महसूस हुआ कि मैं भी लिख सकता हूँ। फिर दो-तीन तक उन्ही पंक्तियों को दिमाग में घुमाता रहा और अंततः एक कविता तैयार हुई। मैं बता नहीं सकता कि वो क्या खुशी थी। कई परिचितों और दोस्तों को कविता पढ़वाई और सुनाई। मिली-जुली प्रतिक्रियाओं से कभी निराशा तो कभी उत्साह मिला। लेकिन वो दिन बेहद ही खुशी का दिन था, जब एक मित्र के पिताजी ने एक स्थानीय अखबार में उसे प्रकाशित करवाया। बस उसके बाद तो माँ शारदे की कृपा होती चली गई और विभिन्न मुद्दों पर लेखन शुरू हो गया।

• लेखन से आप पर कौन सा अच्छा अथवा बुरा प्रभाव पड़ा?   

अभिमन्यु पाण्डेय ‘आदित्य’ – समाज में दो प्रकार के लोग होते हैं। एक जो प्रैक्टिकल होते हैं। उन्हें किसी के सुख दुख या जीवन के उतार चढ़ाव का उन पर कोई फर्क ही नहीं पड़ता। समाज के प्रति वो अधिकतर उदासीन रहते हैं। दूसरे होते हैं कुछ भावुक लोग,जो हर बात को दिल से लेते हैं। उस पर गम्भीर विचार करते हैं और उसमें अपनी भावनाएं जोड़ देते हैं और किसी निर्णय तक पहुंचते हैं। लेखन से जुड़ा व्यक्ति हमेशा भावनाओं के अधीन होता है। उसे समाज के प्रत्येक मुद्दे पर चिंतन और मनन की आदत होती है। किसी की पीड़ा,संताप,खुशी,दुख जैसे तमाम भावों से खुद को जोड़ कर ही वो अपने लेखन में उतार देता है। मेरे साथ भी ऐसा ही हुआ। कई बार इसका लाभ भी होता है तो कई भावनाओं में बहकर नुकसान भी उठाना पड़ता है। संसार में हर प्रकार के लोग हैं। जाहिर है,कुछ भावनाओं की कद्र करते हैं तो कुछ उनसे खिलवाड़।

• क्या आपको लगता है कि लेखन समाज में कुछ बदलाव ला सकता है?

अभिमन्यु पाण्डेय ‘आदित्य’ – जी बिल्कुल। समाज में आज भी यदि कुछ संस्कार और मानवता बची है तो वो सिर्फ लेखन की बदौलत ही है। इतिहास गवाह है कि समय-समय पर अपने समय के साहित्यकारों व कवियों  की रचनाओं  ने समाज को नई दिशा देने का काम किया है। लेखनीबद्ध होकर ही आज हमारे समाज की संस्कृति जिंदा है।

• आपकी अपनी सबसे प्रिय रचना कौन सी है और क्यों?

अभिमन्यु पाण्डेय ‘आदित्य’ – वैसे तो मुझे मेरी अधिकांश रचनाओं से प्रेम है, लेकिन मेरी ‘परदेशी’ और ‘बेटी’ दो कविताएं मुझे बेहद पसंद हैं। ‘परदेशी’ कविता में मैंने गांव से शहर आए उस व्यक्ति की पीड़ा को दर्शाने की कोशिश की है, जो शहर में तमाम कष्ट और समझौते झेल कर जीविका कमाता है और उसके परिजन व गांव के यार दोस्त इसे परदेशी कह कर सम्बोधित करने लगते हैं। जिससे वो खुद को गांव से कटा हुआ पाता है। शहर की तकलीफों और समस्याओं में रहते हुए भी जो एक परदेशी के मन में भवनाएं जाग्रत होती हैं, वो कविता के माध्यम से कहने की कोशिश की है। जबकि वहीं ‘बेटी’ कविता में एक बेटी के जीवन की तमाम पीडाओं को उठाने की कोशिश की है। हमारे समाज मे आज भी बेटी बड़ी होने पर उस पर जो तमाम पाबंदियां आदि लगा दी जाती हैं, वो वास्तव में अपने आप में बहुत निंदनीय है।

• आप अपने लेखन से समाज को क्या संदेश देना चाहते हैं?

अभिमन्यु पाण्डेय ‘आदित्य’ – लेखन तो होता ही समाज की  दिशा और दशा को सकारात्मक करने के लिए है। ऐसे में मेरी भी कोशिश यही रहती है कि समसामयिक मुद्दों पर अपने विचार सकारात्मक ढंग से रख सकूं। इस साक्षात्कार के माध्यम से मैं समाज से अपील करना चाहता हूँ कि मोबाइल और इंटरनेट के इस युग में लेखन को भी महत्व मिले। आज की पीढ़ी जिस तरह से किताबों से दूरी बना रही है, उससे लेखन में भी लोगों की रुचि कम हो रही है। आज समाज को अच्छे साहित्य की आवश्यकता है, जो समाज को ही प्रोत्साहित करना होगा।

साक्षात्कारकर्ता – सुमित प्रताप सिंह 

सुमित प्रताप सिंह

मैं एक अदना सा लेखक हूँ और लिखना मेरा पैशन है। बाकी मेरे बारे में और कुछ जानना चाहते हैं तो http://www.sumitpratapsingh.com/ पर पधारिएगा।