इज्जत का फलूदा (विजेता लघुकथा)
साहित्यिक मंच “लघुकथालोक” पर विजेता लघुकथा
नेहा के साथ मैं अपने अपार्टमेंट में ही रहने वाले एक दंपति की बेटी की छठी पर गई थी. छठी की रस्म में महिलाओं को अन्दर बुलाया गया था, जहां हम बच्ची को देख सकें और गिफ्ट देनी हो वो भी दे सकें. हम दोनों अंदर गईं और गिफ्ट देकर पीछे रखी कुर्सियों पर बैठ गईं.
छठी की रस्म थी, सो दादी-नानी का होना भी आवश्यक था. बच्ची की नानी ने बहुत सुंदर और मोटी ढेरों घुंघुरू वाली चांदी की पायल बच्ची को पहना दी, जो काफी बड़ी थी. फिर बुआ, मौसी, उनके घर के रिश्तेदार एक एक करके गिफ्ट देने लगे.
“रीना देख बच्ची की दादी सबकी नजरों से बचते हुए बच्ची की पायल निकाल रही है.” नेहा ने कहा.
मैंने भी देखा बच्ची की पायल पैरों से निकालकर हाथों में दबा ली. ये कोई बड़ी बात नहीं थी, शायद खोने के डर से उन्होंने हाथ में ले ली होगी.
तभी दादी जी ने कहा अब नानी जी कुछ नेग दे नातिन को! नानी ने कहा मैंने तो सबसे पहले नेग दिया है पायल. इस पर दादी बोलने लगी, “कहा है समधिन जी आपकी दी हुई पायल, मुझे तो नहीं दिख रही”. फिर सारे लोग लगे पायल ढूंढने.
“एक तो आपकी बेटी ने बच्ची जन्म देकर शुरुआत ही खराब कर दी, ऊपर से आप झूठ बोल रही हैं!” दादी जी ने ऊंची आवाज में कहा.
नानी और उनकी बेटी उनकी बातों को सुन रही थीं लेकिन कोई जवाब नहीं दे रही थीं.”
“इतना शोर क्यों मचा रही आंटी जी, मैंने अपने मोबाइल में पायल-चोर की फोटो ले ली है, आप कहें तो सबको दिखा दूं.” नेहा ने दादी को अपनी फोटो दिखाते हुए निर्भीकता से कहा.
अपनी फोटो देखकर दादी जी घबरा गईं, फिर सबके सामने पायल निकलकर पोती को पहना दी.
मैं तो चकित रह गई कि बात करते-करते उसने फोटो कब ले ली थी! मोबाइल होने का इससे अच्छा फायदा क्या हो सकता है!
दादी का लिहाज करते हुए नेहा ने पायल-चोर की फोटो सबको नहीं दिखाई. दादी की इज्जत का फलूदा होते-होते रह गया.