जानिये ३३ करोड़ देवताओं और १०८ का रहस्य
हिन्दू धर्म में मन्त्र, पाठ, यज्ञ में आहूति, या किसी भी अन्य प्रकार की साधना अथवा सिद्दी आदि के लिए मन्त्र की पुनरावृति १०८ बार कम से कम अवश्य की जाती है ! या आपने लिखा हुआ देखा होगा ॐ १०८ श्री गणेशाय नमः ! १०८ ही क्यों ? आइये इसका रहस्य जानते हैं की १०८ ही क्यों ?
विदित हो हमारे यहां देवताओं की संख्या ३३ करोड़ है ( यद्यपि कुछ सेक्युलर जमात के लोगो ने २०१० से जब से व्हाट्वसप आया तब से हिन्दू धर्म के देवताओं को ३३ कोटि बताकर उन लोगों में सफलता पूर्वक भ्रम फैला दिया है जो बेसिक शास्त्रीय ज्ञान से अनभिज्ञ हिन्दू हैं . उनको इन चतुर कंठ चालाक चार सौ बीस लोगों ने शातिर अंदाज में बड़े ही प्रेम पूर्वक से बता दिया कि देखो तुम मूर्ख हो. देवता ३३ कोटि मतलब प्रकार के जिनमे १२ आदित्य , ११ रूद्र, ८ वसु और २ अश्विनी और कुमारों को बता दिए और अच्छे अच्छे लोग भी इसे सत्य मानकर जबरदस्त तरीके से फैलाय। और इस ज्ञान की प्राप्ति से कई मूर्ख गदगद हो उठे , दनादन जो शोशियल मीडिया में इस बात को फैलाये कि पूछिए मत ! आज भी उस फैलाये रायते को हमें समेटना पड़ रहा है यद्यपि वो मूर्ख लोग श्री गणेश , श्री राम, श्री कृष्ण, हनुमान जी , नौ ग्रह, दुर्गा जी और उनके नौ स्वरूप , महालक्ष्मी आदि को ना जाने क्यों भूल गए की ३३ में इनका नाम तो है ही नहीं। तो कुल मिलाकर साजिश यही थी की किसी तरह यह सिद्ध कर दिया जाए श्री राम और श्री कृष्ण भगवान् के स्वरुप नहीं है जिससे कोई अयोध्या, मथुरा में मंदिर की मांग ना करे जो भी हो उसकी चर्चा बाद में फिर कभी ) ।
तो बात यह है की ३३ करोड़ देवता यदि इनके नाम गिनाने लगेंगे तो १०० वर्ष की आयु कम पड़ जायेगी , तब यह ३३ करोड़ देवताओं की बात कितनी सत्य है? जी एकदम सत्य है। बिना किसी संदेह के। कुछ लोग कहते है नाम गिनाओ हम वो भी टेक्निकली आप को गिना देंगे ! तो ये लीजिये नाम !
भगवान् एक ही है वो अपने कई स्वरूप में प्रकट होने का सामर्थ्य रखते हैं जैसे श्री नारायण उनके है तीन स्वरुप ब्रह्मा , विष्णु, महेश , दुर्गा , समय समय पर विभिन्न अवतार जो उन्होंने लिए है। भगवान् के ब्रह्मा स्वरूप से ऋषि और उन ऋषियों से सुर, असुर, नाग, यक्ष , किन्नर , गंधर्व , भूत तथा किम्पुरुष ये सब देवता कहे जाते है देवताओं की आठ जातियाँ है जो स्वर्ग लोक में रहते है और आवश्यकतानुसार वो पृथ्वी और अंतरिक्ष में भी जाने में या रहने में सक्षम होते हैं। इनकी संख्या फिक्स है ३३ करोड़। आप काउंट करेंगे तो पायंगे की ३३ करोड़ है . श्री गणेश, हनुमान जी, राम जी , कृष्ण जी, नौ ग्रह, पांच लोकपाल , दस दिग्पाल, इंद्र, यम, कुबेर, वरुण, अग्नि, प्रजापति , महाकाली, महालक्ष्मी , महासरस्वती, चौसठ लोकपाल, स्थान देवता, कुल देवता, ईष्ट देवता , वास्तु देवता, स्थान देवता, ग्राम देवता , क्षेत्रपाल, आदि । भारत में कितने लोग है १०० करोड़ मतलब एक परिवार में पांच तो बीस करोड़ घर इनके २० करोड़ वास्तु देवता हो गए। इसी तरह से जिन लगों के कुल में आज भी कुलदेवता का स्थान है वो सम्पूर्ण विरादरी के होते है इनकी संख्या भी लगभग ५ करोड़ होगी इसी तरह से स्थान देवता और ग्राम देवता आदि मिलाकर कुल बराबर ३३ करोड़ देवता होते है।
अब मनुष्य की बात ,समस्त मनुष्यों की एक ही जाती होती है चाहे वो कोई भी मानव हो और इसे मानव जाति कहा जाता है वो बात अलग है कि अंग्रेजों ने भारतियों की ही ३९०० से अधिक जातिया बतला दी अपने समय में और हमारे सत्ताधीश मूर्ख मान भी बैठे ( क्षमा चाहूंगा ऐसे शब्दों के लिए पर यह फेक्ट है ) मनुष्यों की उत्पत्ति डाऊन दी लाइन ऋषियों से ही हुई है मनु से देवता और मनुष्य दोनों ही उत्पन्न हुए है जैसे आप कहते है मेरा गोत्र वशिष्ठ है या गौतम है पाराशर है आदि आदि तो इन ऋषियों से देवता और मनुष्य , सूर्य वंश चंद्र वंश आदि आप बड़े गर्व से लिखते है या कहते है तो यही है। मानवों की संख्या आजकल आठ अरब के आस पास है लेकिन क्या इसे हम हिन्दू, मुसलमान, सिख, ईसाई , बौद्ध , पारसी, आदिवासी और नास्तिक कहकर यह कह सकते है की ८ अरब नहीं वल्कि ८ कोटि के है ? और प्रचार कर दें फैलाना शुरू कर दें ? कोई मानेगा ? ठीक इसी तरह ३३ करोड़ देवता है ना कि ३३ कोटि !! शायद आप को यह क्लियर हो गया होगा ! यदि फिर से आप समझना चाहते है तो कृपया युटुब चैनल देखें chandra s pant.
अब १०८ , जैसा की ऊपर स्पष्ट किया है ३३ करोड़ देवता है तो क्या हम सभी तेंतीस करोड़ देवताओं की पूजा करें या कैसे कर सकते है ? तो इसका उत्तर है सभी की पूजा जरुरी नहीं केवल जिनसे आप का सम्बन्ध है आप को उन्हें भोग देना है क्यूंकि वह आप पर ही डिपेंडेंट है आप के कुल देवता और मेरे कुल देवता भिन्न है अतः मुझे या आपको केवल अपने देवताओं से मतलब है। देवता का अर्थ है देने वाला जो हमें देता है। भगवान ने कहीं फ़ोर्स करके नहीं कहा की पूजा करो पाठ करो, परन्तु सुझाव दिया है वेदों और शास्त्रों के माध्यम से , कि हे मनष्यो और हे देवता तुम सब मिलकर मेरे द्वारा रची इसी सृष्टि में अपने अपने धर्म ( धर्म अर्थात कर्तव्य ) का पालन करो इससे मुझे प्रसन्नता होगी। मनुष्य उन देवताओं को भोग दें, बदले में वे देवता मनुष्यो को अन्न , जल , समय पर वर्षा , आयु , आरोग्य प्रदान करें , ये वेद का स्पष्ट आदेश है। सभी देवताओं के लिए ॐ सर्वेभ्यो देवाय नमः कहा जाता है इसी तरह आहूति एक ही बार दे दी जाती है क्यूंकि देवताओं के शरीर पांच महाभूतों से नहीं वरन दिव्य देह होती है वो भूख प्यास का केवल अनुभव ही करते है परन्तु साधारण मनुष्यों की भाँती भोजन इत्यादि नहीं लेते केवल भाव और यज्ञ कर्म में आहूति देकर ही तृप्त होते है और बल प्राप्त करते है अर्थात देवता भी मनुष्यों पर ही डिपेंडेंट है। इसलिए १०८ को छोड़कर अन्य सभी देवताओं को एकआहूति भी दिया तो वो तृप्त हो जाते है। अब ३३ करोड़ में से कौन से देवता जो हमारे अति निकट है और इनको आप चाहकर भी इग्नोर नहीं कर सकते कौन है ये।
(१) श्री गणेश जी एक इनके बिना कोई कार्य सिद्ध नहीं हो सकता , (२) कुल देवता , (३) ईष्ट देवता , (४) स्थान देवता , (५) ५ लोकपाल , (६) 9 ग्रह , (७) १० दिक्पाल , (८) १६ मात्रिकाएँ, (९) ६४ योगिनियां अब इन सब को जोड़िये तो योग आएगा १०८।
अर्थात ये एक सौ आठ देवता ऐसे है जो आप चाहकर भी नहीं हटा सकते या कह सकते की इसे इन १०८ में हटाकर किसी दूसरे को स्थान दे दें। संभव ही नहीं है आप कोशिस कीजिये। क्यूंकि ये १०८ हर पल हर क्षण आपके या हर मनुष्य के साथ होते हैं (किसी सज्जन को डाऊट हो तो मुझे संपर्क भी कर सकते है या यु टब पर देख सकते है) आप कहीं पर किसी भी क्षण बैठे है , जाग रहे है , सो रहे है तो भी ये १०८ आप के साथ ही है आप चेक कर लीजिये। जिन्हें ज्योतिषी की जानकारी हो वो आसानी से समझ गए होंग। हममे से अधिकाँश को १०८ देवताओं के नाम भी याद नहीं होते तो हम ॐ १०८ श्री गणेशाय नमः भी कह दिया करते है वास्तव में इन १०८ में भी भाव यह है की हे गणपति देवता आप के साथ मिलकर जो भी आप सब १०८ देवता है उन सब को नमन !
अब मान लो आपको भगवान् शिव या ने किसी भी देवता या भगवान के स्वरुप को प्रसन्न करके सिद्धि प्राप्त करनी है तो आप उनकी उपासना इन १०८ देवताओं में से किसी को बाईपास करके प्राप्त कर ही नहीं सकते है जब तक ये १०८ तृप्त ना हों। मनुष्य का किया हुआ पुण्य कर्म , ध्यान रहे केवल पुण्य कर्म इन १०८ देवताओं को जाता ही जाता है , जैसे आप सैलेरी लेते है तो आपका इनकम टेक्स कट जाता है और सरकार उसे वसूल कर सभी को किसी अन्य रूप में बाँट देती है ठीक वैसे ही यदि आप ॐ नमः शिवाय मन्त्र का जप करते हैं तो कम से कम १०८ बार करना पडेगा और उनमे से एक एक मन्त्र इन देवताओं को प्राप्त होगा , लेकिन ज्यादातर लोगों को आपको पता नहीं होता अतः वो सोचते है की हमने जप किया वो भगवान् शिव को सीधे अर्पण हो गया। ऐसा नहीं है जब ये १०८ देवता कृपा करेंगे तभी आपका भाव महादेव तक पहुचेगा ! वो बात अलग है कभी कभी पूर्व जन्म का पुण्य शेष है और वो कृपा हो जाये। परन्तु बाईपास नहीं चलेगा।
इसलिए हिन्दू धर्म में हर मन्त्र को कम से कम १०८ बार किये जाने का प्राविधान है। उससे अधिक जो होंगे वो उस मुख्य देवता या भगवान् को प्राप्त होंगे किन्तु ध्यान रहे उसमे भी भाव , शुध्धता होनी चाहिए!!
— चन्द्रशेखर पन्त
उपमहा प्रबंधक, लार्सन एन्ड टुब्रो लिमिटेड @ एयरपोर्ट प्रोजेक्ट