लघुकथा

बेबस बहाने

सुधा दी अक्सर अपने ही ख्यालों में खोयी रहती । घर है परिवार है, बच्चे हैं मनोरंजन के नाम पर टीवी है, हाथ में स्मार्टफोन होते हुए भी ना जाने किन ख्यालों में खोई रहती हैं ।
मैंने उन्हीं कभी उदास या निराश नहीं देखा था । जीजा जी के गुजरने के बाद उनकी सूनी आँखों में कुछ भी पढ़ना असंभव सा प्रतीत होता है ।
मन बहलाने के बहाने उनके करीब जाकर वह बैठ गई ।
दीदी सामान्य शिष्टाचार वश बच्चों के एवं उसके हालचाल पूछे । बातों ही बातों में वह भी पूछ बैठी–
“दी आपको खाने में क्या पसंद है ? आपका प्रिय रंग कौन सा है ? और तो और आपकी बहन हूँ फिर भी यह आज तक नहीं समझ पाई कि आपकी हॉबी क्या है ?”
“अरे ! सुगंधा सारे सवालों के पिटारे क्या आज खोल देगी ? अच्छा तो सुन औरत की अपनी कोई मरजी भी होती है, यह आज तक उसके करीब रहने वाली कोई भी औरत समझने कहां देती है ।”
“दीदी ये आप क्या कह रही हैं ! मैं तो अपनी मरजी का खाती हूँ, अपनी मरजी से पहनती हूँ और तो और अपनी मरजी की फिल्में भी देखती हूँ ।”
“हूँऊऊ….लेकिन एक बात बताओ क्या माँ तेरी पसंद का बचपन में खाना बनाती थी ? या तुझे बाजार ले जाकर मनपसंद कपड़े दिलाती थी, या तेरी सासू माँ तेरी पसंद के खाने बनाने का हक तुझे कभी दिया है ?”
“ओहहह…इस तरह तो हमने सोचा ही नहीं दी ! लेकिन आप यह सब सुना कर हमें क्या समझाना चाहती हैं ?”
“सदानीरा बनना सहज नहीं है , पिछले चालीस वर्षों के संयम स्वरूप, निर्विकार एवं तटस्थ भावों में जीना हमने सीख लिया है ।
शायद इसी वज़ह से हमारे आसपास हमारी वज़ह से अशांति नहीं फैलती ।”
“आभार दी; मैं भी अपने परिवार के खुशियों की खातिर सबका ख्याल रखते हुए अपना ख्याल रखना सीख लूँ,शायद इसी में भलाई है। क्या खुद की मरजी कोई मायने नहीं रखती ?”
“रखती है बहना; परंतु पारिवारिक कलह के बदले कदापि नहीं, भूमि और जननी प्रतिकूल परिस्थितियों में भी सहज रहे, यही प्रकृति भी सिखाती है ।
अगर मनोनुकूल जीवन की चाह में क्लेश बढ़ता जाये तो क्या हम खुश रह सकते हैं, पूछ अपने-आप से ? शाँति की तलाश में सैकड़ों महापुरुषों की जीवनगाथा प्रचलित है । चार दीवारों के बीच शाँति कायम रखना भी तपस्या ही तो है ।”
“दीदी बस किजिए, बेबसी में बहानेबाजी करना सही है क्या ?”

— आरती रॉय

*आरती राय

शैक्षणिक योग्यता--गृहणी जन्मतिथि - 11दिसंबर लेखन की विधाएँ - लघुकथा, कहानियाँ ,कवितायें प्रकाशित पुस्तकें - लघुत्तम महत्तम...लघुकथा संकलन . प्रकाशित दर्पण कथा संग्रह पुरस्कार/सम्मान - आकाशवाणी दरभंगा से कहानी का प्रसारण डाक का सम्पूर्ण पता - आरती राय कृष्णा पूरी .बरहेता रोड . लहेरियासराय जेल के पास जिला ...दरभंगा बिहार . Mo-9430350863 . ईमेल - arti.roy1112@gmail.com