आ जायेगी खुद्दारी
मक्कारों से मक्कारी हो, गद्दारों से गद्दारी।
तभी सलामत रह पायेगी, खुद्दारों की खुद्दारी।।
दया उन्हीं पर दिखलाओ, जो दिल से माफी माँगें,
कुटिल, कामियों को फाँसी पर जल्दी से हम टाँगें,
ऐसा बने विधान देश का, जिसमें हो खुद्दारी।
तभी सलामत रह पायेगी, खुद्दारों की खुद्दारी।।
ऊँचा पर्वत-गहरा सागर, हमको ये बतलाता है,
अटल रहो-गम्भीर बनो, ये शिक्षा देता जाता है,
डर कर शीश झुकाना ही तो, खो देता है खुद्दारी।
तभी सलामत रह पायेगी, खुद्दारों की खुद्दारी।।
तुम प्रताप के वंशज हो, उनके जैसा बन जाओ तो,
कायरता को छोड़, पराक्रम जीवन में अपनाओ तो,
याद करो निज आन-बान को, आ जायेगी खुद्दारी।
तभी सलामत रह पायेगी, खुद्दारों की खुद्दारी।।
कंकड़ का उत्तर हमको, पत्थर से देना होगा,
नीति यही कहती, दुश्मन से लोहा लेना होगा,
निर्भय होकर दिखलानी ही होगी अपनी खुद्दारी।
तभी सलामत रह पायेगी, खुद्दारों की खुद्दारी।।
— डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’