गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल

टपक रहा है प्यार तुम्हारी आंखों में।
फैला यह संसार तुम्हारी आंखों में।
दुनिया भर की रंगीनी के क्या कहने,
सपनों का अभिसार तुम्हारी आंखों में।
दिल पत्थर कैसे हो जाते  उनके भी,
फूलों सा व्यवहार तुम्हारी आंखों में।
धीरे -धीरे सम्मोहन में आ ही जाए,
ऐसा तो मनुहार तुम्हारी आंखों में।
रचने बंधने का आकर्षण है मन का,
जोबन का उपहार तुम्हारी आंखों में।
श्रद्धा और आस्था के पुल मिला रहे,
नव नूतन भिनसार तुम्हारी आंखों में।
— वाई. वेद प्रकाश

वाई. वेद प्रकाश

द्वारा विद्या रमण फाउण्डेशन 121, शंकर नगर,मुराई बाग,डलमऊ, रायबरेली उत्तर प्रदेश 229207 M-9670040890