गीत/नवगीत

गीत “मस्त पवन ने रूप दिखाया”

चहक उठे हैं खेत-बगीचे, धरती ने सिंगार सजाया।
बिछे हुए हैं हरे गलीचे, सरसों ने पीताम्बर पाया।।

निर्मल नदी-सरोवर लगते, कोयल-कागा पंख खुजाते,
मधुमक्खी गुंजार सुनातीं, फूलों पर भँवरे मण्डराते,
पतझड़ के पश्चात धरा पर, पेड़ों ने नव पल्लव पाया।
बिछे हुए हैं हरे गलीचे, सरसों ने पीताम्बर पाया।।

मौसम प्रतिपल बदल रहा है, टेसू ने ली है अँगड़ाई,
कलरव करते सुबह चरिन्दे, महक लुटाती है अमराई,
कलियाँ कुसुम बनी उपवन में, पौधों पर नव-यौवन आया।
बिछे हुए हैं हरे गलीचे, सरसों ने पीताम्बर पाया।।

खेतों में सोना बिखरा है, माटी का कण-कण निखरा है,
सुबह सुहानी-शाम सिँदूरी, दुल्हन जैसी सजी धरा है,
मोहक रूप बसन्ती छाया, वासन्ती परिधान सजाया।
बिछे हुए हैं हरे गलीचे, सरसों ने पीताम्बर पाया।।

अब तो पर्वत अमल-धवल है, झरनों की धारा निर्मल है,
भाँति-भाँति के उपहारों से, जीवन में बढ़ती हलचल है,
नूतन छन्द बना कवियों ने, कुदरत की महिमा को गाया।
बिछे हुए हैं हरे गलीचे, सरसों ने पीताम्बर पाया।।

बौराया गेहूँ का बिरुआ, सुख देती है धूप सुहानी,
घटती जाती आसमान से, कुहरे की अब तो मनमानी,
मलयानिल से चलीं बयारें, मस्त पवन ने ‘रूप’ दिखाया।
बिछे हुए हैं हरे गलीचे, सरसों ने पीताम्बर पाया।।

(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)

*डॉ. रूपचन्द शास्त्री 'मयंक'

एम.ए.(हिन्दी-संस्कृत)। सदस्य - अन्य पिछड़ा वर्ग आयोग,उत्तराखंड सरकार, सन् 2005 से 2008 तक। सन् 1996 से 2004 तक लगातार उच्चारण पत्रिका का सम्पादन। 2011 में "सुख का सूरज", "धरा के रंग", "हँसता गाता बचपन" और "नन्हें सुमन" के नाम से मेरी चार पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। "सम्मान" पाने का तो सौभाग्य ही नहीं मिला। क्योंकि अब तक दूसरों को ही सम्मानित करने में संलग्न हूँ। सम्प्रति इस वर्ष मुझे हिन्दी साहित्य निकेतन परिकल्पना के द्वारा 2010 के श्रेष्ठ उत्सवी गीतकार के रूप में हिन्दी दिवस नई दिल्ली में उत्तराखण्ड के माननीय मुख्यमन्त्री डॉ. रमेश पोखरियाल निशंक द्वारा सम्मानित किया गया है▬ सम्प्रति-अप्रैल 2016 में मेरी दोहावली की दो पुस्तकें "खिली रूप की धूप" और "कदम-कदम पर घास" भी प्रकाशित हुई हैं। -- मेरे बारे में अधिक जानकारी इस लिंक पर भी उपलब्ध है- http://taau.taau.in/2009/06/blog-post_04.html प्रति वर्ष 4 फरवरी को मेरा जन्म-दिन आता है