झूठा बन्धन
तोड़ दो झूठी सामाजिकता की बन्धन
मतलब की बुनियाद पे है जो खड़ी दीवार
जंगल कानून जहाँ पर अभी है जिन्दा
जग में ऐसे रिश्ते होते है सब बेकार
बाजार में रिश्ते की कीमत गिरते मैं देखा
स्वार्थ की सज गई है यहॉ पर बाजार
गॉव जवार में वैमनस्यता की होती खेती
कमजोर बैशाखी पर टिका है सरोकार
अपनापन घर घर से है रूठा अब
झूठ मूठ का खड़ा है जगत में व्यवहार
बड़े बुर्जुग ना मान सम्मान है दुनियॉ में
उदंडता की लंबी लगी है जहाँ कतार
बुढ़ी माता रोती है ड्योढ़ी पे बैठकर
किनसे करे ये अबला अब फरियाद
फल फूल रहे हैं पति पत्नी की दुनियॉ
वृद्धाश्रम बना माता पिता का संसार
भूल गये युवा वर्ग अपनी गरिमा को
संस्कार विहिन हो गया है समाज
पश्चिमी परिधान सब है अपनाये
बेबस हो गई भारतीय संस्का२
चन्दन टीका भूल गये हैं हम
कैसा चला समय का ये व्यापार
हर नुक्कड़ पर खड़ा है दुर्योधन
कब तक चुप रहोगे ओ सरकार
— उदय किशोर साह