कविता

हिन्दी अपनी मान है

हिंदी अपनी जान है,
हिंदी अपनी आन।
हिंदी से संसार में,
जिंदा हिंदुस्तान।
हिंदी के संसार में,
भक्त करोड़ों लोग।
खाना पीना ओढ़ना,
हिंदी में संयोग।
हिंदी अपनी मातृ है,
हिंदी है आसान।
आज विदेशी लोग भी
इसके हैं विद्वान।
गाँव गाँव में खुल गए,
अँग्रेजी स्कूल।
मुरझाने से रोकना ,
तुम हिंदी के फूल।।
हिंदी में उपलब्ध है,
अब तकनीकी ज्ञान।
हिंदी जग में प्यार की,
भाषा आज महान।।
हिंदी से ही देश का,
संभव है कल्याण।
इसमें बसते देश के,
सब जन जन के प्राण।।
अंग्रेजी को जानते,
सिर्फ यहां कुछ लोग।
हिंदी में लेकिन रचे,
लोग अधिक संयोग।
कितने भी अवरोध हों,
या अड़चन के द्वार।
हम हिंदी के पाँव से,
कर सकते हैं पार।।

— बृंदावन राय सरल सागर

बृंदावन राय सरल

सागर एमपी मोबाइल नंबर 786 92 18 525 Attachments area