दोहा गीतिका
पाल पोस कर कर दिया,जिसने वत्स जवान
वृद्ध आश्रम छोड़ कर, भूल गया पहचान
मात पिता के कर्ज को, सकता कोन उतार
मात पिता का तुम कभी,मत करना अपमान
ये बूढ़े माता पिता, क्यों बन जाते बोझ
जो रखते सारी उमर, सब बच्चो का ध्यान
बालक क्यों भूखा रहे, खुद सह ली थी भूख
वही रोटियों के लिए, तरस रहा इन्सान
उन आँखों में नीर है, भीगे जल से नैन
जिसने चाही थी सदा, बच्चो की मुस्कान
बच्चो की किलकारियां, भाता जिनको शोर
उन्हे पुत्र ने कह दिया, खाली करो मकान
दुआ जिन्होने की सदा, बच्चे हों खुशहाल
आज वही गमगीन हो, बांध रहे सामान
आज दुखी हो कर पिता, करते यही सवाल
ऐसी हमने प्रभु कहां, मांगी थी सन्तान
— शालिनी शर्मा