गज़ल
आज़ बिगड़े हैं जो मेरे हालात
तो कल फिर सुधर भी जाएंगेl
जो लोग मेरी नजरों से गिर गए है
वो मेरी निगाह में फिर चढ़ ना पाएंगेl
जिस दिन बरसेगी जब ईमान की बारिश
दाग दामन पे उनके बे हिसाब उभर आयेगेl
हम अकेले ही सही पर इंसान लगते हैं
लोग साथ आ गए तो भीड़ कहलाएंगे।
हां में हां मिलाने का हुनर सीख लूं गर
फिर दोस्त मेरे भी हजारों बन जायेगे।
दूर से पूछोगे कैफियत मेरी तो मुस्कुरा देगे
झांक कर देखो आंखो में अश्क नज़र आयेंगे।
— प्रज्ञा पांडेय मनु