लघुकथा

अमीर

“मिंटू, आ हमारे साथ सतौलिया खेल.” नवीन ने आमंत्रित किया.
“सतौलिया! वो क्या होता है?”
“अरे यही जो हम खेल रहे हैं बुद्धू! पत्थर के ऊपर पत्थर, पत्थर के नीचे पत्थर, फिर बॉल से दे धड़ाम नीचे वाले पत्थर को और फिर भाग, जमा पत्थर के ऊपर पत्थर और जीत! तेरा मन नहीं करता खेलने को!”
“तुमने कभी भूख को देखा है! नहीं देखा होगा! तुम्हारे पास भरे पेट में भी जबरदस्ती ठूंस-ठूंस कर खिलाने वाले जो हैं! मुझे तो भूख के कारण इस छोटी-सी उम्र में तड़के-तड़के अखबार बेचना होता है.” मिंटू की उदासी और बेबसी मुखर हो गई थी.
उस दिन मिंटू को बांटने के लिए अखबार ही नहीं मिले.
भूख से लाचार 10 वर्षीय बालक मिंटू ने एक मकान का गेट बजाया.
“आंटी जी क्या मैं आपका गार्डन साफ कर दूं?” क्यों आने का प्रश्न पूछने पर उसने भी प्रतिप्रश्न किया.
“अरे, आज अखबार नहीं लाया?”
“कल नए वर्ष का दिन जो था, अखबार वालों की छुट्टी थी! अखबार ही नहीं छपे.”
“प्लीज आंटी जी करा लीजिये न, अच्छे से साफ करूंगा.” हाथ जोड़ते हुए उसने दयनीय स्वर में कहा.
“अच्छा ठीक है, कितने पैसा लेगा?” आंटी जी द्रवित हो गई थीं.
“पैसा नहीं आंटी जी, खाना दे देना.”
“ओह!! आ जाओ अच्छे से काम करना.” आंटी जी ने कहा.
“ऐ लड़के..पहले खाना खा ले, फिर काम करना.” उनको लगा कि बेचारा भूखा है पहले खाना दे देती हूँ.
“नहीं आंटी जी, पहले काम कर लूँ फिर आप खाना दे देना.” उसके जैसे बेबस लोग अक्सर अपनी भूख के साथ समझौता करना सीख ही जाते हैं!
“आंटी जी देख लीजिए, सफाई अच्छे से हुई कि नहीं!” एक घंटे बाद बालक ने कहा.
“अरे वाह! तूने तो बहुत बढ़िया सफाई की है, गमले भी करीने से जमा दिए. यहां बैठ, मैं खाना लाती हूँ.”
जैसे ही मालकिन ने उसे खाना दिया, बालक जेब से पन्नी निकाल कर उसमें खाना रखने लगा.
“भूखे काम किया है, अब खाना तो यहीं बैठकर खा ले, जरूरत होगी तो और दे दूंगी.” आंटी जी सदय थीं.
“नहीं आंटी, मेरी बीमार माँ घर पर है, सरकारी अस्पताल से दवा तो मिल गयी है, पर डॉ साहब ने कहा है दवा खाली पेट नहीं खाना है.”
आंटी की पलकें गीली हो गईं. अपने हाथों से मासूम को उन्होंने उसकी दूसरी माँ बनकर खाना खिलाया फिर उसकी माँ के लिए रोटियां बनाईं और साथ उसके घर जाकर उसकी माँ को रोटियां दे आईं और आते-आते कह कर आईं “बहन आप बहुत अमीर हो जो दौलत आपने अपने बेटे को दी है वो हम अपने बच्चों को नहीं दे पाते हैं.”
माँ बेटे को डबडबाई आंखों से देखे जा रही थी…बेटा बीमार मां से लिपट गया.

*लीला तिवानी

लेखक/रचनाकार: लीला तिवानी। शिक्षा हिंदी में एम.ए., एम.एड.। कई वर्षों से हिंदी अध्यापन के पश्चात रिटायर्ड। दिल्ली राज्य स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर दो शोधपत्र पुरस्कृत। हिंदी-सिंधी भाषा में पुस्तकें प्रकाशित। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। लीला तिवानी 57, बैंक अपार्टमेंट्स, प्लॉट नं. 22, सैक्टर- 4 द्वारका, नई दिल्ली पिन कोड- 110078 मोबाइल- +91 98681 25244