कविता

कविता

बीती रात हुआ सवेरा, आँखें खोलो,
देर सुबह तक सोने वालों, कुछ तो बोलो।
बच्चे भी तैयार होकर, स्कूल जा चुके,
दादी दादा पूजा कर, मन्दिर से आ चुके।
चाय पी कर, कुल्ला मंजन करने वालो,
उठ कर चाय पी लो, अब आँखें खोलो।
उर्जा का स्रोत, सुबह का सूरज होता,
चन्दा भी शीतलता, रातों में भर देता।
बीमारियों से ग्रस्त, युवावस्था में होने वालों,
उगते सूरज की किरणों से, उर्जा ले लो।
उगता सूरज, आसमान में लाली लाता,
अद्भुत रंगों से धरा गगन, सब सज जाता।
देर रात क्लबों में, पॉप गीत सुनने वालों,
सुबह सवेरे राग अनुठे, परिंदों से सुन लो।
कब देखा था चाँद, गगन में विचरण करता,
कब देखा था सूरज, अस्ताचल को जाता?
बचपन के दिन छत पर, सोना याद कर लो,
शाम ढले तारों को तकना, सोच कर बोलो।
— अ कीर्ति वर्द्धन