रिश्ता
रिश्ते का धन जग में है अनमोल
पर मतलब की दुनियाँ कर दी गोल
प्रेम मोहब्बत की है कहॉ अब बोल
टुट गई समाज से अब मेल जोल
कैसी बह रही है इस जग में रीत
परिजन से टुटा मानव का प्रीत
माता पिता को वृद्धाश्रम पहुँचाया
पत्नी बच्चे से सब प्रीत बढ़ाया
संयुक्त परिवार था कभी समृद्घ हमारा
बड़े बुढ़े थे जन जन का घर में प्यारा
श्रवण कुमार का अक्स था सारा
स्वार्थ ने लूट ली सपना अब हमारा
अपनापन भूला शहर गॉव जवार
कभी गॉव होता था सबका परिवार
घर के चाहरदीवारी में सिमटा है द्वार
मानवता की बदल गई आचार विचार
कभी पावन थी ये धरती हमारी
पल रही है पड़ोस में ही गद्दारी
हर चेहरे पे लगा है एक नाकाब
इसांन भूल गया पुण्य व पाप
कलियुग ने ली है अद्भूत अवतार
सहम गया है युद्ध से यह संसार
दहशत में जी रहा है यह संसार
विध्वंसक बारूद की है चमत्कार
— उदय किशोर साह