कहानी

आधी अधूरी कहानी

जैसे चाँदनी की सुन्दरता चाँद से और अमावस पर घनघोर अंधकार की अपनी छटा होती है ।ठीक ऐसे ही चकोर को मात्र बारिश की एक ही बूँद अमृत समान लगती है। यह भी शाश्वत सत्य है कि सृष्टि का अस्तित्व नर और नारी से ही संभव है । सृष्टि के निर्माण हेतु परमेश्वर ने उजाला-अंधेरा बनाकर दिन रात बनाए। पशु, पंछी, जीव-जंतु, पेड़-पौधे व वनस्पति तो पृथ्वीलोक पर आ गए पर नर-नारी के बिना दुनिया का अस्तित्व संभव नहीं था तब आदम व हव्वा की सृष्टि हुई। इसके लिए प्रेम का बीज का अंकुरित होना भी अत्यावश्यक था क्योंकि प्रेम ही भरोसा है । प्रेम ही श्रद्धा है और प्रेम ही स्वीकार है ।
प्राय: प्रेम को गलत भी परिभाषित किया जाता है । पर प्रेम इस जहां में एक बेहतरीन खूबसूरत अनुभूति है जिसके उत्पन्न होने का कोई निश्चित समय नहीं है । दरअसल, यह परमात्मा द्वारा प्एप्रदत्त एक अनुपम भेंट है । अत: परमात्मा ही फैसला करता है कि कब किसे यह सुन्दर उपहार दिया जाए।  प्रेम किया नहीं जाता बल्कि यह स्वयंमेव हो जाता है । फिर भी न जाने इन्सान इसी प्यार के लिए इधर-उधर क्यों भटकता रहता है लेकिन सच्चा प्रेम मिलना असंभव तो है पर  ऐसा प्यार तभी मिल पाता है जब हमारा मन एक ही स्थान पर एकाग्र हो । देखिए वक्त से बढ़कर कोई भविष्यवाणी नहीं और अनुभव से बढ़कर कोई ज्योतिष नहीं होता । समस्त जगत ने ही कोरोना महामारी का असहनीय कहर सहन किया हमारे  देश में भी पलायन हुआ था । अनेक लोग भुखमरी का शिकार हुए। युवा वर्ग की जाॅब चलीं गईं । घर-परिवार बिखर गए।  इस कष्टप्रद व गंभीरतम परिस्थितियां में धनी वर्ग भी कोपभाजन का शिकार हुआ । तब समाज सेवकों  ने गरीब, असहाय व बेरोजगार लोगों की तन, मन और धन से रोज़ाना मदद की । प्रशासन का तो इनका सहयोग करना नैतिक कर्तव्य था ।
       इसी समय समाज में एक जोड़ी दीपिका व अनुराग की समाज सेवक बनकर उभरी। ये दोनों भी कोरोना काल से ग्रस्त हुए। दोनों एक ही कम्पनी में कार्यरत थे । दोनों  अपने- अपने काम में एक्सपर्ट थे । दोनों अच्छे दोस्त थे । उन्हीं दिनों में दोनों ने  बैंक से लोन लेकर शुभ मंगल नामक फाइनेंस कंपनी खोली। उनका भाग्योदय हुआ। सोलन बाईपास के पास कथेड़ गांव में कुछेक महीनों की सख्त मेहनत से इन दोनों ने एक तीन मंज़िला रेस्टोरेंट का निर्माण भी  कर लिया। दोनों युवा व यौवन से लबालब थे । दीपिका ने तो अनुराग से सिर्फ मैत्रीपूर्ण संबंध रखे और अनुराग के प्रति उसका प्रेम अभी पूर्णत: आध्यात्मिक था । दोनों फुर्सत के समय शिमला, कुफरी, धर्मशाला घूमने चले जाते । यह उनका हर रविवार का निश्चित टूर होता था । यूँ तो अनुराग भी अभी तक दीपिका के साथ सामान्य था। दोनों एक दूसरे की भावनाओं की पूरी कद्र करते थे  । इसमें कोई दो राय नहीं कि सौभाग्य और दुर्भाग्य एक दूसरे के पूरक हैं। एक सुबह  दीपिका अभी सोकर उठी ही थी कि उसके भाई मनु
का फोन आ गया कि मम्मी सीरियस हैं । इस समय वे इंदिरा गांधी अस्पताल में वेंटिलेटर पर हैं । उनका श्वास उखड़ रहा है । अत: तुम जल्दी शिमला आ जाओ । दीपिका व अनुराग दो घंटे में अस्पताल पहुँच गए। दीपिका की मां का इलाज चल रहा था । उनका स्वास्थ्य अभी स्थिर था । कारोबार के कारण अनुराग को कथेड़ लौटना पड़ा । अपनी मम्मी के इलाज के दौरान दीपिका को शिमला में ही रूकना पड़ा। कुछेक दिन के भीतर ही दीपिका की मम्मी कोरोना को मात देकर स्वस्थ होकर अपने घर आ गईं।
  दीपिका की अनुपस्थिति में अनुराग के लालची पिता ने अमेरिका की स्थाई नागरिक नैंसी से उसकी मंगनी कर दी और एक सप्ताह के भीतर  दोनों का विवाह भी कर दिया गया पर इसकी भनक दीपिका को तो क्या अनुराग के दौस्तों व रेस्टोरेंट के कर्मचारियों को भी नहीं लगने दी । एक दिन मूसलाधार बारिश के बीच दीपिका और अनुराग को नौंनी यूनिवर्सिटी राजगढ़ में आयोजित समारोह में बेतौर मुख्य अतिथि आमंत्रित किया गया। वे समारोह में तो पहुँच गए पर समारोह देर रात तक चलता रहा। समारोह समाप्ति पश्चात तूफानी बारिश ने उन्हें राजगढ़ में ही रूकने को विवश कर दिया पर आज अनुराग के मन भी एकाएक तूफान उठने लगा । वह अपने को काबू नहीं रख पा रहा था । उसने तूफानी बारिश रूकने की प्रतीक्षा करने की अपेक्षा नोंनी यूनिवर्सिटी के पास ही होटल में ठहरने का फैसला किया। दीपिका-अनुराग एक ही कॉलेज में पढ़ते धे ।अनुराग शरीफ और होनहार भी था । अत: दीपिका को अनुराग पर तनिक भी किसी प्रकार का शक-शब्बो नहीं था। दोनों ने रात का खाना खाया और अपने-अपने कमरे में रात्रि विश्राम करने चले गए। नदी उफन रही थी तो तूफान भी  भयावह रूप धारण कर रहा था । अनुराग कुछ समय बाद दीपिका के कमरे में  पहुँच गया और इधर-उधर की बातें करके कहने लगा , “दीपिका !  मुझे नींद नहीं आ रही है । मैं तेरे साथ ही इस कमरे में ठहरना चाहता हूँ ” ।
      दीपिका ने अनिच्छा से स्वीकृति तो दे दी पर किसी अनिष्ट से वह बहुत घबराई हुई थी। बातों-बातों में अनुराग ने दो कोक मंगवाए। दीपिका के इन्कार करने के बावजूद अनुराग ने उसे नशीला पेय युक्त कोक पिला दिया। थोड़ी देर बाद दीपिका को नशा होने लगा। वह बेहोश हो गई। अनुराग ने अपनी हवस मिटाई । सुबह जब वह उठी तो  उसने अपने आपको अस्त-व्यस्त सा पाया । उसको कुछ आभास सा हुआ कि औरत का आत्म सम्मान यानी उसकी अस्मिता लुट चुकी थी । वह बहुत रोई । वह पगला सी गई। क्रोधित होकर उसने अनुराग को गालियाँ दीं । अनुराग कुटिल हंसी मुस्कराता रहा ।
दीपिका का पारा सातवें आसमान पर पहुंच चुका था। उसने अनुराग को मुखातिब होकर कहा,” यह बात बिल्कुल सत्य है कि भूलकर भी किसी इन्सान फर यकीन नहीं करना चाहिए ।
    आयशा ने भी अपनी मौत से पहले वीडियो बनाते यही कहा था ,”  या अल्लाह मुझे फिर कभी किसी इन्सान का मुंह न दिखाना । ये सभी एक से ही हैं। सभी कामी, लोलुप, वहशी व जाहिल होते हैं । बाहर से बहुत भलेमानस पर दिल के बेहद काले । कुछ समय बाद दीपिका ने अपने आपको संभाला । फिर दोनों में जमकर बहस हुई। अनुराग को पश्चाताप हुआ ।  वह कुछ पल उसे देखता रहा। फिर दीपिका से पूछने लगा ,” तुम आज अपने मैनेजर नितिन से क्या बातें कर रहीं थी ?
 ” मुझ से इस तरह सवाल करने का तुम्हें क्या हक है नीच-निर्लज्ज, कमीने इन्सान “।
” यह एक पुरुष का अधिकार है जो तुम्हें बेहद प्यार करता है “। अनुराग ने जबाव दिया ” । मैं तुम्हें पत्नी बनाकर अपने साथ अमेरिका लेकर जाऊँगा।
     “फिर विवाह पूर्व शारीरिक सम्बन्ध बनाने की क्या जरूरत थी “? दीपिका ने अनुराग से प्रश्न किया
     पर भोली-भाली दीपिका क्या समझती कि वासना एक ऐसा घिनौना खेल है जिसका बुढ़ापे तक खात्मा नहीं होता । आग के साथ घी पिघलना स्वाभाविक ही था।
   रोज़ाना के वासना के खेल से तंग आकर आवेश में दीपिका ने अनुराग से कहा ,” अनुराग, आज से हमारे-तुम्हारे  राह अलग-अलग अलग हुए । मुझे तुमसे नफरत हो गई है । मेरी भी इच्छाएं थीं । मेरे कुछ स्वप्न थे । पर अफसोस—–
            ” तूने मेरी जिन्दगी के पल
              तिनका तिनका बिखेर दिए
              वृक्ष से पत्तों की तरह “
 ऐ गंदी नाली के घटिया कीड़े , वहशी तुने  आत्मिक प्रेम के स्थान पर शारीरिक चाहत को अधिमान दिया। तेरा सात जन्म भला न हो और हाँ मुझे बताए बिना फ्लाइट चढ़ने वाले धूर्त, कायर क्या मैं तुझे पकड़कर जहाज से उतार लेती ?  तुम इन्सान की औलाद भी कहलाने के हकदार नहीं हो । जाओ दूर हो जाओ मेरी नज़रों से । भविष्य से मुझे मिलने की उम्मीद ना रखना । एक साथ दो जिंदगियाँ खराब करने चले थे । रहो अपनी नैंसी के पास जिसके साथ तुमने मेरी अनुपस्थिति में सात फेरे लिए थे । अमेरिका मुझे किस आधार पर ले जाना चाहते थे कि सोफ्टवेयर इंजीनियर को तलाक देकर मुझ से विवाह कर लेते। वाह, बहुत खूब अमेरिका पहुँच कर भी मुझ से भेद छुपाए रखा । अपने  विवाह की बात भी छुपाई। अनुराग, तुम मुझे कमज़ोर न समझना। तुम्हेें जैसे-तैसे  अमरीका जाना था। तू चला गया पर मत भूल तुम्हारी मेरे साथ की बेवफ़ाई की बातें आजीवन तुम्हें कचोटतीं रहेंगी। अरे दुष्ट इन्सान किसी तरह कहानी पूरी तो होने देते कहानी को अधूरा क्यों रखा ?
— वीरेन्द्र शर्मा वात्स्यायन

वीरेन्द्र शर्मा वात्स्यायन

धर्मकोट जिला (मोगा) पंजाब मो. 94172 80333