सामाजिक

अपनों के लिए वक्त को.. रुकना तो चाहिए

आजकल हर इंसान अपने जीवन में जिस प्रकार भागा दौड़ी कर रहा है और भाग रहा है अपने लक्ष्य और अपने गंतव्य की ओर.. सबसे ज्यादा नुकसान उसके उन रिश्तो को ही हो रहा है जिनके लिए वह यह भागा दौड़ी और अथक परिश्रम कर रहा है। उसने इस अंधाधुंध सफर का चुनाव जिनके लिए किया था वही रिश्ते उससे पीछे छूटते जा रहे हैं दूर होते जा रहे हैं। एक पिता अपने बच्चों के लिए सुरक्षित भविष्य चाहता है ,वह चाहता है कि उसके बच्चों को सबसे अच्छा जीवन और सुविधामय  जीवन दे सके ताकि उसके रहने और नहीं रहने पर औलाद का भविष्य अंधकार में ना रहे ।बल्कि सुरक्षित रहे उसकी सोच सही है अच्छी भी है । लेकिन इसका एक स्याह पक्ष यह भी है कि वह इन सुविधाओं और सबसे अच्छे जीवन की चाहना में वह उन बच्चों से एक लंबे समय तक दूर रहने को और उनको अपना समय न दे पाने के लिए अभिशापित हो जाता है जिनके लिए वह सब कुछ करना चाहता है।

हमें सबसे पहले अपने जीवन में अपनी प्राथमिकताएं समझनी चाहिए कि हमको सिर्फ धन दौलत या सफलता जीवन में चाहिए । या अपने लोगों अपने बाल बच्चे परिवार सब की देखभाल करते हुए एक सुखी और संतुलित जीवन चाहिए । अगर आपकी प्राथमिकता सिर्फ सफलता और सफलता है तो आप जो समय और संस्कार अपने बच्चों को देना चाहते हैं वह कतई नहीं दे पाएंगे और यदि आपको परिवार के साथ सुखी और संतुलित जीवन जीना है तो कुछ इच्छाओं का त्याग करना ही पड़ेगा।

हर मनुष्य को यह समझने कि जरूरत  बहुत ही महत्वपूर्ण है कि वह जरूरत और इच्छाओं में अंतर करना समझ ले जरूरत और इच्छा में बहुत अंतर होता है । मनुष्य की जरूरत सीमित होती है। इच्छाओं का कहीं विराम स्थल नहीं होता है यह एक के बाद  एक  जीवन में आती रहती हैं प्रतिदिन प्रतिक्षण जन्म लेती रहती हैं हमारे हृदय भूमि में और यह कार्य प्रतिदिन होता रहता है अगर इनको पूरा करने की हम लोग ठान ले तब एक जीवन बहुत छोटा पड़ जाएगा और मनुष्य को एक ही जीवन मिला है । अतः उचित है कि हम इच्छाओं के पीछे ना भाग कर अपनी जरूरतों को पूरा करें और उसके उपरांत अपने परिवार एवं बच्चों को अपना समय दिया जाए जिससे उनके अंदर संस्कार और एक बेहतर इंसान बनने की समझ विकसित हो और हम एक सुखमय जीवन का आनंद उठाएं।

अधिकांश घरों में देखा जा रहा है माता-पिता आर्थिक स्थिति को सुदृढ़ करने के लिए घर से बाहर दिन-रात कार्य करते हैं और बच्चा अकेलेपन अवसाद का शिकार बनता रहता है या गलत संगत संगति में पड़कर अपना जीवन बर्बाद कर लेता है । एक  बहुत मशहूर शेर है …”वक्त रुकता नहीं है किसी के लिए, ना ही मोहब्बत ना दोस्ती के लिए “इसलिए वक्त को तो कहीं पर रुकना नहीं है ना रुक सकता है । किसी के लिए वक्त को रोकने का उपाय किसी के पास नहीं है इसलिए अपने आप को ही रोकना पड़ेगा अपनों के लिए अपनों के खुशी के लिए ना ही बच्चों का बचपन वापस आ सकता है ना ही आप या हम वक्त को पीछे डाइवर्ट करके ले जा सकते हैं अगर नुकसान हो गया तो इसकी भरपाई पूरे जीवन संभव नहीं है।

— रेखा शाह आरबी

रेखा शाह आरबी

बलिया (यूपी )