कविता

मुक्ति है कितनी सुखदाई!

संघर्ष से मिलती है मुक्ति,

मुक्ति के लिए संघर्ष करना,

संघर्ष  ही मुक्ति बन जाता,

बड़े-बड़ों का है यह कहना.

 

मुक्ति की राह कठिन है,

सरल भी बहुत है मगर,

निकलता है अनमोल हीरा,

संघर्ष की भट्टी में तपकर.

 

रुकावट आती है सफलता की राहों में,

यह कौन नहीं जानता है?

फिर भी वह मंजिल पा ही लेता है,

जो हार नहीं मानता है.

 

आधी अधूरी बातें मन पर बोझ होती हैं,

किसी से कह दिया करें,

किसकी सुनें कोई कहे तो सही!

किसी की सुन लिया करें.

 

जब मन से बंधती उम्मीदों की डोर,

होंगे सपने पूरे, कहती है भोर,

ये सपने ही हमें सफलता दिलाएंगे,

उम्मीदें ही तो हैं, जीवंतता का छोर.

 

पराधीनता में जीकर के,

जीवन बन जाता दुःखदाई,

आजादी जब मिले तो लगता,

मुक्ति है कितनी सुखदाई!

*लीला तिवानी

लेखक/रचनाकार: लीला तिवानी। शिक्षा हिंदी में एम.ए., एम.एड.। कई वर्षों से हिंदी अध्यापन के पश्चात रिटायर्ड। दिल्ली राज्य स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर दो शोधपत्र पुरस्कृत। हिंदी-सिंधी भाषा में पुस्तकें प्रकाशित। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। लीला तिवानी 57, बैंक अपार्टमेंट्स, प्लॉट नं. 22, सैक्टर- 4 द्वारका, नई दिल्ली पिन कोड- 110078 मोबाइल- +91 98681 25244