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सामाजिक समरसता का महान ग्रंथ श्रीरामचरित मानस –

सामाजिक समरसता का महान ग्रंथ श्रीरामचरित मानस –
श्री राम को मर्यादा पुरुषोत्तम इसलिए नहीं कहा गया कि वह चक्रवर्ती सम्राट दशरथ के पुत्र थे, बहुत बलशाली थे। उन्हे मर्यदा पुरुषोत्तम इस लिए कहा गया कि जीवन के प्रत्येक कदम पर उनका जीवन मनुष्यों को मार्गदर्शित करता है। वह सभी को साथ लेकर चलने वाले है। श्री राम पक्षी गिद्ध जटाऊ को भी गोद में उठाकर रुदन करते हैं, निषाद से मित्रता करते हैं, शबरी को माता कहकर जूठे बेर खाते हैं, हनुमान को भरत के समान भाई का दर्जा देते हैं, सुग्रीव को संत्रास से दूर करते हैं, बनवासियों के साथ रहते हैं उनके साथ भोजन करते हैं, वाचितों का संगठन करते हैं, सभी को गले लगाते हैं, लंका जीतने के बाद भी विभीषण को वापस कर उन्हे राजा बनाते हैं। श्री रामचरितमानस में भगवान श्रीराम के चरित्र का चित्रण जितने प्रभावशाली तरीके से किया गया है, उतने ही प्रभावशाली तरीके से भगवान राम के माध्यम से जीवन को जीने का तरीका भी बताया गया है। रामचरितमानस में मनुष्य को बताया गया है कि जीवन को सफल और सुखी बनाना है तो राम को भजने के साथ ही सांसारिक व्यवहार का भी रखें ध्यान। इन दिनों राजनीति के कई घाटों का पानी पी चुके सपा नेता स्वामी प्रसाद मौर्य ने तुलसीदासकृत महाकाव्य ‘‘श्रीराम चरित मानस’’ पर ही  हल्ला बोल दिया। मौर्या का इस प्रकार का बयान उनकी विफलता, कम बुद्धिमत्ता और विक्षिप्तित्ता को दर्शाता है। मौर्य हिंदू समाज को तोड़ने का काम कर रहे हैं, सब प्रकार से हार चुके स्वामी प्रसाद अब समाज को विघटित करने का बीड़ा उठा रहे हैं। ऐसा करने से मौर्या अपना ही नही बल्कि अखिलेश यादव का भी नाश करने पर तुले हैं। जबकि डॉ राममनोहर लोहिया श्रीराम के प्रति श्रद्धा सुमन अर्पित करते थे उन्होंने तो चित्रकूट में श्रीराम जीवन के प्रसंगों को समाज के लिए मेले का आयोजन करवाया था। किंतु आज के तथाकथित समाजवादी नेता राम से द्वेष रखते हैं। भगवान श्री राम इन्हे कभी छमा नही करेंगे। हिन्दू समाज अब जाग्रत हो रहा है ऐसे विधर्मियो को पहचान रहा है। अब इनकी कोई दाल नही गलने वाली। स्वामी प्रसाद मौर्य और अखिलेश यादव दोनों को हिन्दू समाज से माफी मांगनी चाहिए। और इस प्रकार का कुकृत्य करने के लिए प्रायश्चित करना चाहिए। इन्हे ज्ञान होना चाहिए की “श्री रामचरित मानस’’ एक काव्य ही नहीं बल्कि सनातन धर्मावलम्बियों द्वारा भगवान के रूप में आराध्य मर्यादा पुरुषोत्तम प्रभु श्री राम की जीवन कथा है। इस महाकाव्य में मानवता की कल्पना, जिसमें उदारता, क्षमा, त्याग, निवैरता, धैर्य और सहनशीलता आदि सामाजिक शिवत्व के गुण अपनी पराकाष्ठा के साथ मिलते हैं। इसमें राम का सम्पूर्ण जीवन-चरित वर्णित हुआ है। इस महान कृति में  ‘‘चरित’’ और ‘‘काव्य’’ दोनों के गुण समान रूप से मिलते हैं। “रामचरित मानस’’ केवल एक भक्ति कथा नहीं बल्कि अवधी की श्रेष्ठतम भक्ति काव्य और संसार के श्रेष्ठ महाकाव्यों में से एक है। इसके मुख्य छन्द चौपाई और दोहा हैं, बीच-बीच में कुछ अन्य प्रकार के भी छन्दों का प्रयोग हुआ है। भारतीय साहित्य-शास्त्र में महाकाव्य के जितने लक्षण दिए गए हैं, वे उसमें पूर्ण रूप से पाए जाते हैं। श्रीरामचरितमानस सामाजिक समरसता का संदेश देती है। समरसता का संदेश सदैव संत देते रहे हैं आज भी दे रहे हैं।
अगर कोई श्रीरामचरितमानस का स्वाध्याय करेगा तो उस घर परिवार में लड़ाई झगड़े नहीं होंगे। समाज में सामाजिक समरसता का निर्माण होगा। छोटा बड़े के प्रति, बहू का सास के प्रति, राजा का जनता के प्रति व  संतों के प्रति क्या कर्तव्य होना चाहिए यह श्रीरामचरितमानस हमें बताती है।  श्री रामचरित मानस सामाजिक समरसता का अद्भुत ग्रंथ है। मानस के प्रारंभ में ही शिव चरित्र के माध्यम से हमें भगवान शिव की पारिवारिक एवं सामाजिक समरसता का संदेश मिलता है। शिव के परिवार में बैल, शेर, सांप, चूहा व मोर आदि सभी विपरीत स्वभाव के होने के बाद भी प्रेम से रहते हैं तथा विवाह प्रसंग में देवता एवं भूत, प्रेत, पिशाच आदि सभी एक साथ चलते हैं।
रामचरितमानस लोक-शिक्षा, लोक- प्रेरणा, लोकोपदेश, लोक-व्यवहार तथा लोकाचार का विश्व कोश  है। गोस्वामी तुलसीदास के इस महान ग्रन्थ में पाठकों को लोकानुभव जन्य अनेक ऐसे सदुपदेश उपलब्ध होतें हैं जिनके द्वारा समाज बुराइयों से सजग रहकर भलाई की ओर सरलता से अग्रसर हो सके और अपने जीवन तथा समाज को सुखी बना सके। गोस्वामीजी के समय में कलयुग के प्रभाव से तथा विदेशी शासकों के अनाचार के कारण लोगों में नैतिकता का एक प्रकार से लोप ही हो गया था। राजा , प्रजा , वर्ण , समाज सभी ने बौद्धिक चेतना का त्याग कर दिया था जिसके कारण समाज में अनैतिकतापूर्ण दुराचार व्याप्त हो गया था। समाज में कोई भी नियमों का पालन नहीं करता था। इस स्थिति का अवलोकन करके गोस्वामीजी की आचारवादी और मर्यादावादी भावना को अवश्य ही गहरी ठेस पहुँची होगी। इसीलिये उन्होंने रामचरितमानस में पग-पग पर नीति- निरूपण करते हुए समाज को सदाचार, मर्यादा –पालन, नियम-पालन आदि की शिक्षा तथा प्रेरणा दी है।
राम भक्तों की पार्टी कही जाने वाली भाजपा के खिलाफ राजनीतिक प्रतिद्वन्दिता और वैमनस्यता की भड़ास निकालने के लिए श्रीरामचरित मानस का अपमान धर्मावलम्बियों की भावनाओं को आहत करना ही है। रामचरित मानस की आड़ में स्वामी प्रसाद मौर्य जिस भाजपा को निशाना बना रहे हैं उसे इस अभियान से राजनीतिक लाभ ही होगा।
बालभास्कर मिश्र
स्तंभ लेखक, लखनऊ

*बाल भास्कर मिश्र

पता- बाल भाष्कर मिश्र "भारत" ग्राम व पोस्ट- कल्यानमल , जिला - हरदोई पिन- 241304 मो. 7860455047