पर्यावरण

वर्टिकल फॉरेस्ट : गगनचुंबी इमारतों में लहलहाते जंगल

प्रकृति सृष्टि रचना का आधार है। प्रकृति आनंद का उत्स है। प्रकृति दिव्यतम है, अन्यतम है। वह प्रीतिकर स्नेह रसागार है। प्रकृति जीवन-राग का मधुर आलाप है, आलंबन है। प्रकृति की परिधि से परे कुछ भी नहीं। प्रकृति रोग-शोक नाशक है। प्रकृति प्राण प्रदायिनी अधिष्ठात्री देवी है। प्रकृति का अस्तित्व न केवल मानव अपितु समस्त प्राणियों को जीवनी शक्ति एवं ऊर्जा भेंट करता है। प्रकृति और मानव के संबंध अन्योन्याश्रित हो परस्पर पूरक हैं, सह-अस्तित्व का सायुज्य पथ है। तभी तो मानव सभ्यता का विकास नदियों के तीर पर निर्मल नीर की तृप्ति और अरण्य की सुखद छांव की सुख-संतुष्टि में ही सम्भव हुआ है। मानव ने प्रकृति सम्पदा की समृद्धि से प्रेरित हो विकास एवं विस्तार की राह पर पग धरे। विकास यात्रा के क्रम में मानव मन में प्रकृति से अत्यधिक प्राप्त कर लेने के लोभ-लालची भाव ने दृष्टि बदली। फलत: मानव विकास के नाम पर प्रकृति के विनाश की राह पर चल पड़ा। विकास की अंधी दौड़ में वह प्रकृति एवं मानव के आत्मीय रिश्ते को भुला बैठा। जंगल, पहाड़ कटने लगे। सरिताओं के हृदय पर मशीनें गरजने लगीं। प्रकृति की लूट में आगे निकलने की होड़ बढ़ी, प्रकृति कराहने लगी। धरा के आभूषण हरित कानन कटे तो ऋतुचक्र असंतुलित हुआ। असमय वर्षा एवं सूखा-बाढ़ नियति बनी। धरती के ताप में वृद्धि हुई, हिमनद पिघले। मानव जीवन पर अस्तित्व का संकट आ खड़ा हुआ। प्रकृति मानव को चेतने-संभलने का संदेश देती रही पर मानव बजाय समझने-सीखने के जंगल दर जंगल काट धरती के वक्षस्थल पर कंक्रीट के विशाल कानन निर्मित करता रहा। जहां पथिक को न तरु-छांव है न पक्षियों को बसेरा। शहर-शहर गगनचुंबी इमारतों के टॉवर खड़े हुए जिनके अपार्टमेंट के फ्लैट में कैद जीवन को न शुद्ध हवा की प्राप्ति है न सूर्य के प्रकाश की। नीले आसमान में चमचमाती तारावलियों को देख मोहित हो जाना शायद उनके नियति में ही नहीं। शीतल चांदनी के स्पर्श को महसूस करना तो कल्पना की बात है। पेड़-पौधों की सुखद मलय बयार से वंचित कृत्रिमता की चादर ओढ़े जी रहे नगरों में बीमारी का फैलाव तो है पर प्रकृति का नहीं। प्रकृति से मानव के टूटे रिश्ते को संवारने के लिए इटली निवासी नगर वास्तुकार स्टेफनो बोएरी ने ‘वर्टिकल फॉरेस्ट’ की कल्पना की जहां मानव और प्रकृति के सम्बन्धों को मजबूती दी जा सके। जहां गगनचुंबी इमारतों के अपने फ्लैट में भी मानव प्रकृति का सान्निध्य एवं स्नेह प्राप्त कर आनंदित हो सके। ‘वर्टिकल फारेस्ट्री’ गगनचुंबी बहुमंजिला इमारतों में जंगल उगाने एवं विकसित करने की अत्याधुनिक तकनीक एवं कला है जो पूरी दुनिया में बहुत तेजी से लोकप्रिय हो रही है, इसमें बालकनी एवं छतों पर पेड़-पौधे एवं झाड़ियां रोपी-उगायी जाती हैं।
      वर्ष 2000 में दुबई प्रवास में स्टेफनो बोएरी के मन में ऐसी इमारतें बनाने का विचार उभरा जो हरीतिमा से युक्त हों। विचार को साकार करने हेतु इटली के फैशन शहर मिलान में 2007 में ‘वर्टिकल फॉरेस्ट’ पर आधारित बहुमंजिला इमारत के काम में जुटे जो 2014 में 80 मीटर एवं 112 मीटर ऊंची दो बहुमंजली इमारतों के रूप में पूरा हुआ, जहां 800 से अधिक बड़े एवं मझोले पेड़ तथा 5000 से अधिक लघुकाय पौधे एवं झाड़ियां-लताएं रोपे-विकसित किये गये। दुनिया ने जब ऐसी इमारतें देखी जिसकी बालकनी, खिड़कियों और छतों पर इतने पेड़-पौधे लगे थे जो धरती के लम्बवत एक जंगल ही थे, तब वह वर्टिकल फॉरेस्ट्री से परिचित हुई।
      फॉरेस्ट विकसित होने के बाद इमारत में ताजी स्वच्छ प्राणवायु का प्रवाह तो बना ही साथ ही पर्यावरण में संतुलन भी स्थापित हुआ है। अब ऑक्सीजन की पर्याप्त उपलब्धता बनी रहती है और यह पेड़-पौधे कार्बन डाई ऑक्साइड सहित अन्य विषैली गैसों को सोख कर परिवेश को प्राणवायु से समृद्ध एवं समुन्नत भी रखते हैं। अब ये इमारतें केवल कंक्रीट का खड़ा हुई कोई नीरस बेजान ढांचा भर नहीं हैं बल्कि अब इनमें प्रकृति के साथ जुड़ाव का जीवंत दर्शन एवं आत्मीयता भी अभिव्यक्त हुई है। कह सकते हैं कि वानिकी की यह कला प्रकृति एवं मानव के पुरा सम्बन्धों की नवल व्याख्या है, नूतन परिभाषा है जिसमें जीवन के इंद्रधनुषी रंग खिले हुए हैं, जिसमें सह-अस्तित्व का आत्मीय राग पत्तों एवं फूलों की हंसी में गुंजित हो रहा है। यह कृत्रिमता की चादर पर प्रकृति की स्नेहिल स्निग्ध छाप है। ये इमारतें अब प्रकृति के सौंदर्य एवं समृद्धि को संजोए हुए पखेरुओं को आमंत्रण देती हैं। सैकड़ों पेड़-पौधों एवं पुष्प-लताओं को देख कर स्वाभाविक रूप से हजारों की संख्या में पक्षी भोजन एवं आश्रय की तलाश में यहां आए और स्थाई बसेरा बना लिए। दिनभर पक्षियों के मधुर कलरव से फ्लैट गुंजायमान रहते हैं। डालियों पर सरपट दौड़ती गिलहरी किसका मन न मोह लेंगी। फल कुतरते तोते किसे न प्यारे लगेंगे। सुबह खिड़की खोलते ही सैकड़ों रंग-बिरंगी तितलियां दिन की शानदार शुरुआत करती हैं। यहां निवास करने वाले व्यक्तियों को सुख तो मिला ही साथ ही उसे प्रकृति के सान्निध्य में जीवनयापन का आनंद भी प्राप्त हुआ। शोध निष्कर्ष है कि इससे परिवारों में पारस्परिक प्रेम भाव अधिक मधुर एवं प्रगाढ़ हुए। कार्यालयों में काम करने वाले कर्मचारियों की कार्यक्षमता बढ़ी और खुशी का पैमाना भी।
        इटली से शुरू हुआ वर्टिकल फॉरेस्ट्री आधारित इमारतों का निर्माण लोकप्रिय होने लगा है। इटली के प्रयोग के बाद चीन, अमेरिका, नीदरलैंड, सिंगापुर, मलेशिया, फिलीपींस एवं भारत में वर्टिकल फॉरेस्ट के महत्व को स्वीकार करते हुए ऐसी बहुमंजिला इमारतों का निर्माण किया जा रहा है जहां पर लघु कानन विकसित हो। वर्टिकल फारेस्ट में लगाए जाने वाले पौधों में छायादार, शोभाकारी, औषधीय पौधों साथ ही स्थानीय परिवेश में सहजता से विकसित हो जाने वाले अधिक ऑक्सीजन का ज्यादा उत्पादन करने और विषैली गैसों को अधिक सोखने वाले पेड़-पौधों को प्राथमिकता दी जाती हैं। भारत की पहली वर्टिकल फॉरेस्ट इमारत बंगलुरु में 14 मंजिली ‘माना फारेस्टा’ के नाम से विकसित हुई है जिसमें पेड़-पौधों, लताओं एवं झाड़ियों ने इमारत को नैसर्गिक सौंदर्य प्रदान किया है।
       वर्टिकल फॉरेस्ट से न केवल वायु शुद्ध हुई है बल्कि ध्वनि प्रदूषण में भी कमी का अनुभव किया गया है। पूरे इमारत के तापमान को भी कम करने में वर्टिकल फॉरेस्ट की बड़ी भूमिका स्वीकार की गई है। निश्चित रूप से वर्टिकल फॉरेस्ट्री प्रकृति एवं मानव के सम्बंधों के नूतन आयाम गढ़ रही है।
— प्रमोद दीक्षित मलय

*प्रमोद दीक्षित 'मलय'

सम्प्रति:- ब्लाॅक संसाधन केन्द्र नरैनी, बांदा में सह-समन्वयक (हिन्दी) पद पर कार्यरत। प्राथमिक शिक्षा के क्षेत्र में गुणात्मक बदलावों, आनन्ददायी शिक्षण एवं नवाचारी मुद्दों पर सतत् लेखन एवं प्रयोग । संस्थापक - ‘शैक्षिक संवाद मंच’ (शिक्षकों का राज्य स्तरीय रचनात्मक स्वैच्छिक मैत्री समूह)। सम्पर्क:- 79/18, शास्त्री नगर, अतर्रा - 210201, जिला - बांदा, उ. प्र.। मोबा. - 9452085234 ईमेल - pramodmalay123@gmail.com