सामाजिक

आधुनिकरण ने रिश्तों की मर्यादा ही ख़त्म कर दी

माना कि ज़िंदगी की जद्दोजहद से जूझते इंसान को कुछ पल खुशियों के, हँसी मजाक के चाहिए होते है जिसका सोशल मीडिया बहुत सुंदर माध्यम है। सोशल मीडिया पर हमें सारी सामग्री मिल जाती है, अच्छी बात है। तो आज बात करते है लोगों को एंटरटेन करने वाले मिम्स और विडियोज़ की। आज तक सिर्फ़ महिलाएँ ही जोक मटीरियल थी, हर चुटकुलों में महिलाओं को लपेटा जाता था। पर जब से सोशल मीडिया पर फ़नी मिम्स और विडियोज़ बनाने का चलन शुरू हुआ है, तब से हर कोई, हर किसीको लपेट रहा है।
सोशल मीडिया और इंटरनेट पर फ़नी मिम्स फनी वीडियो, फोटो या एनीमेशन का प्रयोग किसीको ट्रॉल करने के लिए, मजाक उड़ाने या किसी के चेहरे पर मुस्कान लाने के लिए किया जाता है। इंटरनेट पर फ़नी मिम्स बाकी मिम्स के मुकाबले बहुत तेजी से वायरल होते है।
मिम्स का मतलब एक विचार, व्यवहार, या शैली है जो किसी संस्कृति के भीतर एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति के अंतर्गत होता है। एक मीम विचारों और मान्यताओं की जानकारी को संचारित करने का काम करता है। पर आजकल फेसबुक और इंस्टाग्राम पर मिम्स और आड़े टेढ़े परिवार के ही सदस्यों की खिल्ली उड़ाने वाले विड़ियो ड़ालकर फ़ाॅलोअर्स बढ़ाने की और पैसे कमाने की होड़ लगी है। जिसमें बच्चों को भी नहीं बख़्शा जाता। मम्मी और बेटी मिलकर अपने पापा की टाँग खींच रही होती है, पति-पत्नी एक दूसरे को कुछ भी बोलते हुए लताड़ देते है। न शब्दों का लिहाज़, न रिश्तों की गरिमा का ख़याल रखा जाता है। माँ अपनी बेटी से कहती है तेरे पापा में तो अक्कल नाम की चीज़ ही नहीं, तो पत्नी पति के सर पर हाथ में जो भी चीज़ होती है दे मारती है। और पति, पत्नी को मज़ाक के ज़रिए कम अक्कल साबित कर देता है। सास, बहू के विडियोस भी कम नहीं होते, माँ समान सास की फिरकी लेती बहू और बेटी समान बहू को तानें कसती सास के विडियो देखकर महसूस होता है जैसे एक दूसरे पर भड़ास निकाल रही हो। आधुनिकरण ने रिश्तों की मर्यादा ही ख़त्म कर दी है।
माना कि ये सब मजाक के तौर पर, लोगों को हँसाने के लिए होता है, पर इन सारी चीज़ों से समाज को क्या फ़ायदा? बच्चें क्या सीखते है इससे? न कोई संदेश होता है, न सीख कभी-कभी तो इतने बकवास विडियो होते है न हँसी आती है, न देखने का मन करता है। बच्चों के दिमाग में भी आजकल यही भूत सवार होता है। ये सब देखकर लगता है सोशल मीडिया का उपयोग से ज़्यादा दुरूपयोग हो रहा है।
कई बार किसीको ट्रोल करने के लिए भी ऐसे मिम्स बनाए जाते है, जिसकी वजह से आपसी अनबन की घटनाएं भी सामने आती है। मस्ती-मजाक को बिना नाराज हुए मस्ती के रूप में लिया जाना चाहिए। लेकिन हर चीज की एक सीमा होती है। अगर कोई सीमा पार कर जाए, तो मस्ती दुश्मनी का रुप भी ले सकती है। मज़ाक करने और अपशब्द बोलने में फ़र्क होता है। हम एक ऐसे समाज में रहते है जहाँ निजी तौर पर बातचीत करने पर भी लोग आसानी से नाराज़ हो जाते है।
किसीको भी सोशल मीडिया या सार्वजनिक स्थान पर एक्सपोज़ करने या अपशब्द बोलने का अधिकार नहीं है। यदि इस तरह के कार्य कहीं भी किए जाते है, तो व्यक्ति पर मानहानि का आरोप लगाया जाना चाहिए।
बनाया गया कोई भी मीम किसी व्यक्ति के निजी मामलों से संबंधित नहीं होना चाहिए। इसमें केवल सत्य और तथ्य शामिल हो उसका ख़याल रखना चाहिए। जिससे कि यह मानहानि को दावत न दे। मस्ती, मस्ती में भी आप समाज को सीख देकर कोई उदाहरण पेश कर सकते हो। और हो सके तो बच्चों को इन चीज़ों से दूर रखने का प्रयास करें ऐसे मिम्स बच्चों के साथ न बनाएँ, जिसमें माता-पिता या परिवार वालों की खिल्ली उड़ाई जा रही हो।
— भावना ठाकर ‘भावु’ 

*भावना ठाकर

बेंगलोर