ग़ज़ल
इश्क़ वाजिब ठिकाना नहीं है
इसलिए दिल लगाना नहीं है
टीस थोड़ी है बाकी अभी तक
दर्द इतना पुराना नहीं है
जिनके हाथों में हरदम नमक हो
चोंट उनको दिखाना नहीं है
आईने सी हमारी ये फितरत
पत्थरों को बताना नहीं है
छोड़ जाएं कहाँ इस जहां को
कोई दूजा ज़माना नहीं है
‘जय’ सहेजो तुम अपनी ये ग़ज़लें
बेसबब ही लुटाना नहीं है
— जयकृष्ण चांडक ‘जय’