धर्म-संस्कृति-अध्यात्म

ईश्वर है तभी तो यह सृष्टि है

एक महात्मा श्रद्धालुओं के एक समूह को भगवान व उस तक पहुंचने के तरीके बता रहे थे, तभी सभा में बैठा एक नास्तिक, जिसका उद्देश्य लोगो का ध्यान हटाकर विघ्न डालना था, बोला ‘महात्मन्! भगवान में ध्यान लगाने की बात तो तब आएगी, जब हम इस बात से आश्वस्त हों कि भगवान सचमुच में है।‘ महात्मा को उस व्यक्ति की मंशा समझते देर न लगी, पर वह क्रुद्ध होने की बजाये मुस्कराये व उस व्यक्ति से कहा कि वह एक सप्ताह के बाद उनसे इसी स्थान पर मिले।

जो दिन तय किया गया था, उस दिन महात्मा एक खूबसूरत चित्र लेकर आये। चित्र इतना खूबसूरत था कि उसने सबका मनं मोह लिया। लोग बार-बार चित्रं को देखते थे। कुछ देर बाद जब लोग अपने स्थानों पर बैठ गये थे, तो वही व्यक्ति, जिसने भगवान की मौजूदगी के बारे में शंका जताई थी, बोला- ‘महाशय, यह खूबसूरत चित्र आप कहां से लाये है?‘ महात्मा ने ऐसे जाहिर किया जैसे वह अनभिज्ञ हों व बोले ‘न जाने कहां से यह मेरे कमरे में टपक पड़ा।‘ वह व्यक्ति महात्मा के उत्तर से अविश्वस्त था, अतः बोला-जो आप कह रहे हैं वह विश्वास करने योग्य नहीं, जरूर कोई बहुत अच्छा चित्रकार है, जिसने इस चित्र को बनाया है। महात्मा मुस्करा दिये व बोले-शायद अब आप मेरी बात को समझेंगे।

उस व्यक्ति को सम्बोधित करते हुए महात्मा बोले- ‘अगर आप इस बात से आश्वस्त हैं कि इस चित्र को बनाने वाला कोई चित्रकार जरूर है, तो आपके यह संदेह क्यों होता है कि इस विश्व, जिसका सौन्दर्य मन को मोहने वाला व हैरान करने वाला है, को बनाने वाला भी कोई बहुत बड़ा कलाकार है। जिस विश्व में हम रहते हैं, उस में अनगिनत पृथ्वियाॅ, सूर्य, चन्द्रमा व सितारे है। जिस पृथ्वी पर हम रहते हैं उसके सौन्दर्य की तो कोई तुलना ही नही है। एक ओर जहां गगनचुम्बी सफेद बर्फ की शाल ओढ़े पर्वत है, दूसरी ओर ऐसे रेगिस्थान हैं। जहां एक मिनट खडे़ होकर ऐसे लगता हैं कि रेत का समुंद्र कहीं खत्म ही नहीं होता। लाखों तरह के मन को लुभाने वाले फूल, लताएॅ, पेड़ व पौधे है। झरने, हरी वादियाॅ, झाीलें व नदियाॅ अपने सौन्दर्य से स्तब्ध कर देती हैं।‘

इस कमरें की खिड़कियो में झूमते हुए गुलाबों को देखो, जिन की खुशबू यहां तक पहुंच रही है। कितनी कोमल हैं इनकी पंखडियां। रंगो की तो बात ही न पूछो – धूप हो या मूसलाधार वर्षा, इनके रंग फीके नहीं पड़ते। हम सब मिलकर एक वृक्ष नही बना सकते। अगर किसी कृत्रिम पदार्थ को बना भी लें, तो न तो वह बढ़ेगा, न उस पर फल लगेंगे।

‘मनुष्य द्वारा बनाये गये वायुयान, जहाज व गाड़ियां अक्सर समय के अनुशासन से बाहर हो जाते है, पर उस भगवान द्वारा बनाई गई व्यवस्थाओं को देखो-पृथ्वी सदैव एक निश्चित समय में सूर्य के चारों ओर अपना फासला तय करती है। इसी तरह चन्द्रमा एक निश्चित समय में पृथ्वी के चारों तरफ अपनी परिधि को पूरा करता हैं।‘

अगर हम अपने शरीर को ध्यान से देखें तो पता लगेगा‘ किस ज्ञानपूर्ण ढंग से उस परमात्मा ने इस की रचना की है। भीतर हाड़ों से उस परमात्मा ने इस की रचना की हैं। भीतर हाड़़ो का जोड़, नाड़ियों का जाल, मांस का लेपन, चमड़ी की तह। हृदय, फेफड़े व प्लीहा किस तरह भोजन से रक्त को बनाकर, साफ करके सारे शरीर में भेज रहे है, किस तरह मलमूत्र का निष्कासन होता है व गुर्दे किस तरह एक छलनी का काम कर रहे हैं। किस प्रकार हमारा मस्तिष्क सारी इन्द्रियों के मार्ग को कार्यरत कर रहा है। यही नहीं, अरबों व्यक्ति इस विशाल पृथ्वी पर हैं, पर सब की शक्ल, सोच व कार्य की क्षमता अलग-अलग हैं। ऐसी अदभुत रचना भगवान ने नहीं की तो और किसने की?

लगाकर हाथ कानों पर, करो कोशिश दवाने की,
तुम्हें आवाज आयेगी प्रभु के कारखाने की ।।
सदा दिन-रात चलती हैं मशीने कोन सी इस में,
उबलने की रगड़ने की, ध्वनी पिसने पिसाने की।।
ना गेंहू से न चावल से, न सब्जी से न दालों से,
बदन में खून बनता है, विधि क्या है बनाने की ।।
प्रभु के कारखाने में नसों का जाल फैला है,
करोड़ो नाड़ियां इसमें, नहीं ताकत गिनाने की।।
लहू से मांस-मज्जा सें, बने हड़ियों के ढांचे पर,
पलस्तर साफ चमड़ी का, कला देखो सजाने की।।

‘नाना प्रकार की धातुओं से जड़ित भूमि, अति सूक्ष्म बीज से बड़े जैसे बड़े वृक्ष की रचना, असंख्य तरह के फूल-फल वनस्पति बताते हैं कि इस सृष्टि का रचयिता कोई महान शक्ति है।‘

अन्त में अपनी वाणी को विश्राम देने से पहले महात्मा ने कहा- जले स्थले च पुष्पेषु तथा प्रस्रवणेषु च। प्रभुर्न दृश्यते येन।

नीला सूद

आर्यसमाज से प्रभावित विचारधारा। लिखने-पढ़ने का शौक है।