भरोसा प्यार और संजीवनी
रिश्तों में भरोसा है
तभी प्यार है,
बिना भरोसे के प्यार कहां?
बिना प्यार के रिश्ता कैसा?
जब रिश्तों में भरोसा होता है
तभी प्यार का फूल खिलता है।
जहां प्यार होता है
वहीं विश्वास झलकता है
तब यही विश्वास संजीवनी बूटी
सरीखा लगता है।
जो भरोसे संग प्यार का
अप्रतिम अनुबंध होता है।
भरोसा, प्यार और संजीवनी का
अद्भुत त्रिकोण बनता है।