वरदान है पुरुष
नींव है स्तम्भ भी , प्रबुद्ध है प्रकर्ष भी,
सबल है समर्थ है, अविचल कर्मण्य भी
है पुरूष पुरूषार्थ भी, अखण्ड सौभाग्य भी
है कठोर तप पुरूष, बहुत कठिन व्रत पुरूष
है कठिन साधना , बहुत कठिन आराधना।
प्रबल सभी विकटता का, निराकरण है पुरूष
एक पूर्णता है पुरूष , अपूर्णता के सार का।
मर्यादित रूप है , अद्भुत विधान का।
अभिमान है पुरूष, वरदान है पुरूष
अजर अमर विचारता का परिणाम है पुरूष।
— वन्दना श्रीवास्तव