कविता

वरदान है पुरुष

नींव है  स्तम्भ भी , प्रबुद्ध है प्रकर्ष भी,
सबल है समर्थ है, अविचल कर्मण्य भी
है पुरूष पुरूषार्थ  भी, अखण्ड सौभाग्य भी
है कठोर  तप पुरूष,  बहुत कठिन व्रत  पुरूष
है कठिन साधना  , बहुत कठिन आराधना।
प्रबल सभी विकटता का, निराकरण है पुरूष
एक पूर्णता है पुरूष  , अपूर्णता के सार का।
मर्यादित रूप है , अद्भुत विधान का।
अभिमान है पुरूष,  वरदान है पुरूष
अजर अमर  विचारता का परिणाम है पुरूष।
— वन्दना  श्रीवास्तव

वन्दना श्रीवास्तव

शिक्षिका व कवयित्री, जौनपुर-उत्तर प्रदेश M- 9161225525