सामाजिक

वाकई लड़कियों ने क्या तरक्की की है

“जैसे उब चुका संसार एक समय की लाज शर्म के गहनों से लदी और दहलीज़ के भीतर सलिके से रहती लड़कियों के रहन सहन से, वैसे वापस कब नफ़रत करेगा संसार दिन ब दिन कपड़े कम करके वसुधा पर सरे-आम नग्नता का नंगा नाच दिखा रही लड़कियों से”
एक ज़माना था कि हाथ और चेहरे के सिवाय औरतों का कोई और अंग पर पुरुष देख ले तो औरत शर्म से पानी-पानी हो जाती थी। दूसरी बार भूले से उस पुरुष के सामने आने से कतराती थी। पर आजकल की लड़कियाँ दावत देती है मर्दों को कि आओ मेरे तन की भूगोल का कोना-कोना पढ़ लो, फिर पढ़ कर अपनी वासना को जगाओ और वासनापूर्ति के लिए जहाँ भी किसी लड़की को अकेला पाओ मसल ड़ालो।
उर्फ़ी जावेद से लेकर वेब सीरिज़ों में काम करने वाली लड़कियों ने समाज का बेड़ा गर्द करके रख दिया है।
कहने का मतलब ये हरगिज़ नहीं की लड़कियाँ बुर्के में रहो, सर से पाँव तक कपड़ों से ढ़की रहो। कहने का मतलब इतना ही है कि खुद ही अपनी इज्जत सरेआम अपने ही हाथों से उतारा न करो, तुम्हारी ऐसी हरकतों का खामियाजा मासूम बच्चियों को चुकाना पड़ता है। कभी ये सोचा है? सड़क पर नाम मात्र के कपड़े पहनकर तस्वीरें खिंचवा तुम रही हो, पर तुम्हारे तन से लालायित होकर दरिंदे भूखे भेड़िये बनकर बलात्कारी बन जाते है। इस बात में बिलकुल भी अतिशयोक्ति नहीं कि 50% बलात्कार ऐसी घटिया लड़कियों की बदौलत ही होते है।
आजकल लड़कियों को फ़ेमश होने का, खुद को लाईमलाइट में रखने का और पब्लिसिटी के साथ पैसे कमाने का शोर्टकट मिल गया है। कपड़े उतारो पूरी कायनात पर छा जाओ। कोन्ट्रोवर्सी खड़ी करो लोगों को आकर्षित करो।
ये आपकी तरक्की नहीं इसे पतन की खाई में गिरना कहते है। नंगेपन को अपनाकर शर्मो, हया जैसे गहने को उतार फेंका है। जो लड़कियाँ कहीं पर नहीं चलती, हुनर के नाम पर ज़ीरो होती है वो कपड़े उतारकर हीट हो जाती है। बहोत बड़ी विडंबना है ये आज के जमाने कि, अगर आपसे कुछ भी नही हो पाता तो आप नंगे हो जाओ। ना मेहनत न, कुछ पाने की जद्दोजहद बस कपड़े उतारो, सड़क पर नाचो अपना जिस्म दिखाओ आपका काम बन गया। साथ में पैसा तो खुद ही आने लगेगा। इसमें सिर्फ़ ऐसी घटिया मानसिकता वाली लड़कियों का ही दोष नहीं, क्योंकि समाज भी चाहता ऐसे नंगे लोगो को देखना। कुछ लोग ऐसे है जो इनकी सराहना करते इन्हें बोल्ड़नेस का खिताब भी दे देते है, जो ऐसी लड़कियों को और नीचे गिरने के लिए प्रेरित करता है। वाकई देश ने क्या तरक्की की है। कोई माँ बाप कैसे सह लेते होंगे अपनी लड़की का ऐसे सड़क पर खड़े रहकर अश्लीलता फ़ैलाना या सीरिज़ों में काम करने के बहाने कपड़े उतारना।
बात करें फोटोग्राफ़र्स की तो ऐसी लड़कियों को इतनी तवज्जों देते है जैसे कोई आसमान से परी उतरकर आई हो, या कोई देवी का अवतार। मैड़म इस तरफ़ देखिए, मैड़म ऐसा पाॅज़ दीजिए! अरे भाई देश में और कितने सारे मसले और मुद्दे पड़े है उनको उजागर करो न क्यूँ नग्नता को बढ़ावा दे रहे हो। ऐसी लड़कियाँ अपने आप को कुछ समझते फोटोग्राफ़र्स को भाव तक नहीं देती फिर भी बेवकूफ़ों की तरह फोटो लेने की होड़ में खुद की बेइज्जती करवा रहे होते है। आगे पुलिस की बात करें तो दो पैसे कमाने के जुगाड़ में शांति से बैठकर धंधा करने वाले लारी ठेले वाले गरीब मजलूमों को डंडे दिखाकर धौंस जमाते रहते है, पर नाम मात्र के कपड़े में सड़क पर खड़े रहकर नग्नता का प्रदर्शन कर रही लड़कियों के ख़िलाफ़ कोई एक्शन नहीं लेंगे। क्या समाज में फैल रही अश्लीलता रोकना पुलिस की ड्यूटी नहीं है? हाथ खिंचकर दो रात थानें की हवा खिला दो सुधर जाएगी।
ऐसी लड़कियाँ आने वाली पीढ़ी की लड़कियों को क्या संदेश देना चाहती है, क्या सीखाना चाहती है? कहाँ जा रहा है हमारा समाज, क्यूँ किसीकी नज़र में ये गंदगी चुभती नहीं? सच में समाज के लिए ये बहुत बड़ा प्रश्नचिन्ह है। अगर बेटियों की आने वाली पीढ़ी को सुसंस्कारित बनाना है तो ऐसी बेशर्म लड़कियों की हरकतों पर रोक लगाना बेहद जरुरी है।
— भावना ठाकर ‘भावु’

*भावना ठाकर

बेंगलोर