कविता

स्नेह की स्नेहिल सुगंध

सुमन से सुरभिमय गंध का, रिश्ता बड़ा पुराना,

खिले-झड़े-टूटे चाहे, भंवरा भी है दीवाना.

प्रेम के प्रेमिल महक की, महिमा कही न जाय,

निखरे तो निहाल करे, बिखरे अमर हो जाय.

स्नेह की स्नेहिल सुगंध, सराबोर कर जाय,

समता-इज्जत-मान से, मन जगमग कर जाय.

कर्म की कर्मठ सुगंध, अपना सानी आप,

बिन आहट-आवाज के, हरती सारे ताप.

देश की माटी की महक, मन में जिसके समाय,

खुद में वह संतुष्ट रहे, काम देश के आय.

साहित्य की सुभग सुवास से, सुरभित है संसार,

हित-रंजन-अंजन लगे, ज्ञान भी बढ़े अपार.

सुगंध सफलता की अमित, है जीवन का सार,

अर्थार्जन-यश-उमंग से, मिले सभी का प्यार.

निज गुण-धर्म-सुगंध से, मन में मोद समाय,

फहरे परचम प्रेम का, जग सुरभित हो जाय.

*लीला तिवानी

लेखक/रचनाकार: लीला तिवानी। शिक्षा हिंदी में एम.ए., एम.एड.। कई वर्षों से हिंदी अध्यापन के पश्चात रिटायर्ड। दिल्ली राज्य स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर दो शोधपत्र पुरस्कृत। हिंदी-सिंधी भाषा में पुस्तकें प्रकाशित। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। लीला तिवानी 57, बैंक अपार्टमेंट्स, प्लॉट नं. 22, सैक्टर- 4 द्वारका, नई दिल्ली पिन कोड- 110078 मोबाइल- +91 98681 25244