कविता

बहारों से कह दो

चारों ओर बहार है,
मौसम खुशगवार है,
मदमाती बसंती ऋतु में,
बह रही फागुनी बयार है.

बसंती फूलों के दयार में,
अमराई के बौर-सिंगार में,
फागुनी रंगों की बौछार में,
तितलियों की सितार में
भंवरों की गुंजार में,
कहां इतनी कशिश है,
जो प्रियतम के इंतजार में है.

बहारों से कह दो,
अभी न इतराएं,
मदहोशी की मस्ती में,
अभी न इठलाएं,
अपनी सुहावनी सदाएं-अदाएं,
संजोकर रखें
स्नेही साजन के स्वागत में.

बहारों से कह दो,
फूल बरसाएं खुशी के आलम में,
चांदनी रात के सुहावने सरमाए में,
प्रियतम के आगोश में,
हो रहा जब प्रेमिल अभिसार हो.

*लीला तिवानी

लेखक/रचनाकार: लीला तिवानी। शिक्षा हिंदी में एम.ए., एम.एड.। कई वर्षों से हिंदी अध्यापन के पश्चात रिटायर्ड। दिल्ली राज्य स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर दो शोधपत्र पुरस्कृत। हिंदी-सिंधी भाषा में पुस्तकें प्रकाशित। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। लीला तिवानी 57, बैंक अपार्टमेंट्स, प्लॉट नं. 22, सैक्टर- 4 द्वारका, नई दिल्ली पिन कोड- 110078 मोबाइल- +91 98681 25244