कविता

मेरी पहचान

कैसे बताऊं,
मेरी पहचान
थी अनजान,
लेखनी मेरी सिमटी
डायरी के पन्नों में,
मन की बातें उकेर देती,
फिर उसी पन्ने में कलम रख
बंद कर देती थी डायरी,
महामारी ने पकड़ा जोर
ध्यान गया अपने हुनर की ओर,
पन्नों के पिंजरे से निकल
आ गई लेखनी प्लेटफार्म पर,
फेसबुक इंस्टाग्राम
व्हाट्सएप टि्वटर,
मंच मिला काफी बेहतर,
लेखनी ने उड़ान भरी,
पन्नो  से निकलकर आई,
लोगों के बीच ख़ुशी से,
मिली सराहना सम्मान पत्र
अखबार में प्रकाशन,
गर्व सा हुआ अनुभव,
फिर गई एक महफिल
था एक कवि सम्मेलन,
हुआ  फिर वहां काव्य पाठ,
तालियों की गड़गड़ाहट,
तभी किसी ने कहा,
आप  फलाँ  है ना?
किंकर्तव्यविमूढ़, चकित,
किसी अनजान ने,
पुकारा मुझे मेरे नाम से,
बस मिल गई मुझे पहचान,
अनजान दिलों में,
बन गया था मकान
यही है मेरी पहचान|

— सविता सिंह मीरा

सविता सिंह 'मीरा'

जन्म तिथि -23 सितंबर शिक्षा- स्नातकोत्तर साहित्यिक गतिविधियां - विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में रचनाएं प्रकाशित व्यवसाय - निजी संस्थान में कार्यरत झारखंड जमशेदपुर संपर्क संख्या - 9430776517 ई - मेल - [email protected]