कविता

चाहत है मेरी

चाहत मेरा खून का कतरा,देश की सरहद पर बहाऊँ।
देश हित कुर्बान हो कर के, लौट  तिरंगे  में  इठलाऊँ।
चाहत है इन बाहों का बल,अबला का संबल बन जाऊँ।
है उठता मन प्रेम उमड़ कर, स्नेह अनाथ का  बन पाऊँ।
चाहत  धन मन तन सब,दीन दुखी सेवा में लगाऊँ।
अपाहिज लाचार जो फिरते,जा मैं उनका दर्द बँटाऊँ।
चाहत है  बन  देश  का  नेता, बेरोज़गारी  दूर  भगाऊँ।
गरीब अमीर एक हों यहाँ, समानता अधिकार दिलाऊँ।
नारी का ना शोषण होगा, कुपोषण की भूख मिटाऊँ।
रिश्तों में कड़वाहट हो ना, वैर विरोध मन के मिटाऊँ।
चाहत  है बन  प्रेम का पंछी, प्रियसी के आंगन में आऊँ।
बोलूँ प्रेम की भाषा मन से, मन मोहनी का दिल रिझाऊँ।
चाहतहै बन सुमन माला,प्रियाके बालों में सज जाऊँ।
सरक के बालों से धीरे  मैं, अंग अंग छू कर इतराऊँ।
— शिव सन्याल

शिव सन्याल

नाम :- शिव सन्याल (शिव राज सन्याल) जन्म तिथि:- 2/4/1956 माता का नाम :-श्रीमती वीरो देवी पिता का नाम:- श्री राम पाल सन्याल स्थान:- राम निवास मकड़ाहन डा.मकड़ाहन तह.ज्वाली जिला कांगड़ा (हि.प्र) 176023 शिक्षा:- इंजीनियरिंग में डिप्लोमा लोक निर्माण विभाग में सेवाएं दे कर सहायक अभियन्ता के पद से रिटायर्ड। प्रस्तुति:- दो काव्य संग्रह प्रकाशित 1) मन तरंग 2)बोल राम राम रे . 3)बज़्म-ए-हिन्द सांझा काव्य संग्रह संपादक आदरणीय निर्मेश त्यागी जी प्रकाशक वर्तमान अंकुर बी-92 सेक्टर-6-नोएडा।हिन्दी और पहाड़ी में अनेक पत्रिकाओं में रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। Email:. [email protected] M.no. 9418063995