चाहत मेरा खून का कतरा,देश की सरहद पर बहाऊँ।
देश हित कुर्बान हो कर के, लौट तिरंगे में इठलाऊँ।
चाहत है इन बाहों का बल,अबला का संबल बन जाऊँ।
है उठता मन प्रेम उमड़ कर, स्नेह अनाथ का बन पाऊँ।
चाहत धन मन तन सब,दीन दुखी सेवा में लगाऊँ।
अपाहिज लाचार जो फिरते,जा मैं उनका दर्द बँटाऊँ।
चाहत है बन देश का नेता, बेरोज़गारी दूर भगाऊँ।
गरीब अमीर एक हों यहाँ, समानता अधिकार दिलाऊँ।
नारी का ना शोषण होगा, कुपोषण की भूख मिटाऊँ।
रिश्तों में कड़वाहट हो ना, वैर विरोध मन के मिटाऊँ।
चाहत है बन प्रेम का पंछी, प्रियसी के आंगन में आऊँ।
बोलूँ प्रेम की भाषा मन से, मन मोहनी का दिल रिझाऊँ।
चाहतहै बन सुमन माला,प्रियाके बालों में सज जाऊँ।
सरक के बालों से धीरे मैं, अंग अंग छू कर इतराऊँ।
— शिव सन्याल