कहानी- अन्तिम निर्णय
पवन के पास नीता का फिर फोन आया। वह पूछ रही थी- “तुमने क्या निर्णय किया है?” सदा की तरह पवन आज भी यही कह पाया- “विचार कर रहा हूँ।” और फोन काट दिया।
पवन एक स्थानीय कम्पनी के लिए अपने घर से ही वेबडिजायनर का कार्य करता था और अपने लिए अच्छी आय कर लेता था। लगभग 5 वर्ष पहले उसका विवाह नीता के साथ हुआ था। यद्यपि नीता के परिवारवाले इससे सहमत नहीं थे, लेकिन नीता को पवन का स्वभाव पसन्द आ गया था, इसलिए उसने स्वयं निर्णय लेकर पवन से विवाह किया था। पवन स्वभाव से बहुत सीधा था, जबकि उसकी माँ बहुत तेज थी। प्रारम्भ से ही वह नीता को अपने नियंत्रण में रखना चाहती थी, इसलिए हर बात पर उसको रोज टोका करती थी। नीता को यह टोका-टाकी बिल्कुल पसन्द नहीं थी, क्योंकि वह अपने कार्य अपने ही तरीके से करने में विश्वास रखती थी।
रोज-रोज की टोका-टाकी से सास-बहू के सम्बंध बिगड़ने लगे। पवन बहुत दब्बू स्वभाव का था। वह अपनी माँ से बहुत दबता था, इसलिए उससे कुछ कह नहीं पाता था। उल्टे वह नीता को ही समझाया करता था। इससे नीता और अधिक चिढ़ जाती थी।
पवन की दो बहनें भी थीं- आशा और निशा, जो दोनों विवाहित थीं। वे पूरी तरह अपनी माँ पर गयी थीं और अपने छोटे भाई पवन को अपनी उँगलियों पर नचाया करती थीं। जब भी वे मायके आती थीं, नीता को तरह-तरह के आदेश दिया करती थीं, जैसे वह घर की नौकरानी हो। नीता किसी तरह सहन कर रही थी।
लगातार तनाव और टोका-टाकी से नीता उदास रहने लगी और इसका प्रभाव उसके स्वास्थ्य पर भी पड़ने लगा। जब उसकी तबियत अधिक खराब हो गयी, तो उसकी सास ने उसे मायके भेज दिया, ताकि उसकी देखभाल न करनी पड़े। इस बात से नीता बहुत आहत हुई। अपनी माँ और भाइयों की देखभाल से नीता कुछ महीने में स्वस्थ तो हो गयी, लेकिन उसने ससुराल न जाने का निश्चय कर लिया। सबने उसे बहुत समझाया, पर वह न मानी और उसने पारिवारिक अदालत में तलाक का आवेदन दे दिया। वह एक स्कूल में बच्चों को पढ़ाती थी, इससे उसे आर्थिक चिन्ताएँ नहीं थीं।
अदालत में तलाक के मामले पर कई सुनवाइयाँ हो चुकी थीं। इसी बीच पवन की माँ किसी बीमारी से चल बसी। अब पवन बिल्कुल अकेला रह गया था। उसके पिताजी पहले ही नहीं थे और बहनें मौखिक सहानुभूति जताकर अपने-अपने घर चली गयी थीं। नीता अपनी सास के मरने पर भी उसके घर नहीं गयी थी। कहावत है कि घरनी के बिना घर भूत का डेरा होता है। इससे पूरी तरह अकेले रह गये पवन के घर की हालत बिगड़ने लगी। वह कभी खाना बना लेता था, कभी बिना खाये भी रह जाता था। कई बार वह स्नान किये और कपड़े बदले बिना ही काम पर लगा रहता था।
अन्तिम सुनवाई के दिन जब उसके तलाक का फैसला होने वाला था, तो पवन अपनी एक बहिन के साथ वहाँ आया था। उस समय उसकी हालत बहुत दयनीय थी। लगता था कि वह कई दिनों से सो रहा था और बिस्तर से ही उठ आया है। उसके कपड़े सब मैले और अस्त-व्यस्त थे और बाल बिखरे हुए थे। नीता वहाँ अपने बड़े भाई के साथ आयी थी। वह पवन की हालत देखकर बहुत दुःखी हुई। उसे लगा कि पवन को मेरी जरूरत है। लेकिन उसने वहाँ कुछ नहीं कहा और तलाक का फैसला सुन लिया। फिर वे सब अपने-अपने घर चले गये।
लेकिन नीता सामान्य नहीं हो सकी। उसे पवन पर बहुत तरस आता था और अब तो उसकी माँ भी नहीं थी, इसलिए वह फिर से पवन के पास ही जाना चाहती थी। वह दूसरा विवाह करना नहीं चाहती थी कि पता नहीं दूसरा पति कैसा निकले। उसने अपने स्कूल की प्रिंसीपल को अपने मन की हालत बतायी। वह समझदार थी। उसने कहा कि यदि पवन भी तुम्हें साथ रखने को तैयार हो, तो तलाक की चिन्ता किये बिना तुम फिर उसके साथ रह सकती हो। लेकिन इससे पहले उसका मन टटोलना होगा।
संयोग से प्रिंसीपल पवन की एक बहिन निशा से परिचित थी। उसने उससे बात की, तो वह पवन और नीता को फिर से मिलाने के लिए सहमत हो गयी, लेकिन यह कहा कि इसके लिए दोनों परिवारों की सहमति होना आवश्यक है। इसलिए एक मीटिंग की जा सकती है। प्रिंसीपल ने कोशिश करके दोनों परिवारों की मीटिंग करायी। उस मीटिंग में तय हुआ कि इस शुभ दिन नीता फिर से पवन के साथ रहने के लिए चली जाएगी। वह शुभ दिन बाद में तय कर लिया जाएगा।
मीटिंग समाप्त होने के बाद नीता अपनी छुट्टी के दिन घंटे-दो घंटे के लिए पवन से मिलने जाने लगी। दो-तीन सप्ताह ऐसा करने के बाद उसने पवन से कहा कि अब यहाँ स्थायी रूप से साथ रहने का दिन तय कर लेना चाहिए और एक छोटा-सा फंक्शन कर लेना चाहिए। पवन इसके लिए तैयार था, परन्तु उसकी बहनें दिन तय करने में बहानेबाजी कर रही थीं। वास्तव में वे पवन को अपने चंगुल में रखना चाहती थीं और नीता को बिल्कुल पसन्द नहीं करती थीं। हालांकि यह बात वे स्पष्ट नहीं कहती थीं, लेकिन नीता को समझने में कठिनाई नहीं हुई।
उसने पवन को बहुत समझाया कि तुम्हारी बहनें तुम्हें सुखी नहीं देखना चाहतीं। तुम्हें उनके चंगुल से निकलना चाहिए और स्वयं निर्णय करना चाहिए। परन्तु पवन स्वभावतः दब्बू था, उसमें अपनी बड़ी बहनों की उपेक्षा करने का साहस नहीं था। तंग आकर नीता ने उससे एक दिन स्पष्ट कह दिया कि मुझे एक सप्ताह के अन्दर दिन तय करके बता दो, नहीं तो यह मामला समाप्त समझो।
इस स्पष्ट धमकी के बाद पवन डर गया। वह समझ गया कि यदि वह अपनी बहनों के कहने पर ही चलता रहा, तो कभी उनके चंगुल से बाहर नहीं निकल पाएगा और अपनी जिन्दगी खराब कर लेगा। इसलिए उसने अन्तिम निर्णय कर लिया और सप्ताह पूरा होने से पहले ही एक शुभ दिन तय करके नीता को बता दिया और अपनी बहनों को भी सूचित कर दिया। उसकी बहनें एकदम आश्चर्य में पड़ गयीं कि हमसे पूछे बिना दिन कैसे तय हो गया।
निर्धारित दिन एक छोटे से रेस्टोरेंट में फंक्शन हुआ। पवन की ओर से उसकी एक बहिन निशा और कुछ दोस्त शामिल हुए। नीता की ओर से पूरा परिवार शामिल हुआ और उसके स्कूल की प्रिंसीपल भी आयीं। फिर वरमाला कार्यक्रम हुआ, डांस और खाना-पीना हुआ। अन्त में सबसे विदा और शुभकामनाएँ लेकर पवन और नीता साथ-साथ अपने घर चले गये, एक नई जिन्दगी शुरू करने के लिए।
— डॉ. विजय कुमार सिंघल