बेईमानों पे वार
जब जब बेईमानों के सीने पर
होने लगती है ईमान की प्रहार
चोर लुटेरों की महफिल में
ईमानदारी से बढ़ जाती तकरार
ईमान की जब नीयत साफ हो
ना होती स्वार्थ का व्यापार
तब बेईमानों के मुहल्ले में
मच जाती है चीख पुकार
चोर चोर मौसेरे भाई बन जाते
एक मंच पर बन कर सब यार
ईमान के खिलाफ हल्ला बोल
छेड़ जाते हैं जंग और वार
बेईमानी पर लटक जाता है ताला
टुट जाती है लुट की दरबार
अपनी साख बचाने हेतु तब
ईमान की दामन पर थोपते रार
जरा झाँक कर देख लो भाई
इनके द्वारा किये सब बाजार
कालिख चेहरे पे पुत जाता है
जब होती है ईमान की प्रहार
आओ रे जग वाले तुम भी समझौ
इन बेईमान साथी की व्यापार
लुट खसोट की भर गई बस्ती
बंद हो इनके हर लुट की दरबार
— उदय किशोर साह