कविता

भारत में लोकतंत्र नहीं है

होली है भाई होली है
रंग बिरंगी होली है
चाहे जितना रंग लगाऊँ
बुरा न मानो होली है
मगर मैं तो बुरा मानूंगा
क्योंकि ये तो मेरा लोकतांत्रिक अधिकार है
कारण भी मैं ही बताता हूं।
मैं खानदानी आदमी हूँ
सत्ता का पैदाइशी अधिकारी हूँ,
आपने मेरे अधिकारों का हनन किया
सत्ता की चौखट से मुझे कोसों दूर कर दिया।
मैं कब से चीख रहा हूं
भारत में लोकतंत्र नहीं है,
पर आपको समझ ही नहीं आता,
इसीलिए मैं विदेश जाकर
अपनी बात खुलकर कहता
झूठी बात करता, मन की भंड़ास निकालता
दुश्मन देशों की तारीफ में कसीदे पढ़ता
उनके गले लगता, लगाता
अपनी नैतिक परंपरा को आगे बढ़ाता
अपने और अपने पुरखों के गलत कदमों का आरोप भी
इसीलिए तो आप की सरकार पर मढ़ता
जीने के लिए राजनीति भी करना है
सत्ता की चाह में कुछ तो करना ही है
आखिर चर्चा में भी तो रहना है।
दुश्मनों से गलबहियां करके
उनकी तारीफ करता हूं
अपनी फितरत के सबूत देता हूँ
जमानत पर हूँ तो क्या हुआ?
कुर्सी की खातिर कुछ भी कर सकता हूँ।
देश को बदनाम ही नहीं बेंच भी सकता हूँ।
पार्टी और पार्टी के लोग आज
महज प्रतीक भर बचे हैं,
घुट घुटकर वो भी पार्टी का झंडा उठाए हैं
मगर मेरे लिए नहीं,
अपने स्वार्थ के लिए पार्टी में जमें हैं
क्योंकि यहां बड़े पदों पर जो बने हैं
ये और बात है कि
उनके पास अपना एक वोट भी नहीं है
मेरी और मेरी आड़ में राजनीति कर रहे हैं
मेरे प्रधानमंत्री बनने की उम्मीद में
खुद भी मंत्री पद के ख्वाब संजोए हैं।
ये तो इनका सौभाग्य है
कि मैं इनकी उम्मीदें मरने भी नहीं देता।
फिर भी जो हमें छोड़कर जा रहा है
उसे बाखुशी जाने देता हूँ
कम से कम वे ही सत्ता सुख उठाएं
इसकी शुभकामनाएं भी देता हूँ।
हमारी मजबूरी है कि हम तो कहीं जा भी नहीं सकते
पुरखों के नाम पर कालिख तो नहीं पोत सकते।
उम्र बढ़ रही है, अब तक कुंवारा हूं
लगता है जैसे मेरे हाथों में शादी की रेखा ही नहीं है।
अम्मा भी अब बीमार रहने लगी हैं
लगता है अब बूढ़ी हो गई हैं
बहू देखने की शायद लालसा ज्यादा बढ़ गई है।
कैसे बताऊँ उन्हें?
मुझे दूल्हा नही बनना
सिर्फ एक बार क्वांरा ही सही
बस!प्रधानमंत्री बनना है।
अब आप ही बताओ
जब इसकी कोई उम्मीद नहीं दिख रही
इसलिए मैं आरोप लगाता हूं
तो गलत क्या करता हूँ भला
जबसे आप सत्ता में आये हैं
लोकतांत्रिक संस्थाओं पर अंकुश लगाए हो,
मुझे प्रधानमंत्री बनने की राह तक नहीं दे रहें हो,
और बड़े गर्व से लोकतंत्र की दुहाई दे रहे हो।
आपके लोकतंत्र की बहती बयार
मुझे तो छू भी नहीं रही है,
सब मिलकर सिर्फ़ मुझे उल्लू बना रहे हो,
तभी तो देश में कम,विदेश में ज्यादा घूम घूमकर
रोज रोज चीख चिल्ला रहा हूँ।
जबसे तुम सत्ता में आये हो
भारत में लोकतंत्र बिल्कुल ही नहीं
सारी दुनिया को यही तो बता रहा हूँ,
एक राज की बात भी बता देता हूँ
किसी से न बताना,ये वादा भी चाहता हूं।
मैं प्रधानमंत्री बन जाता तो
दो काम एक साथ हो जाते,
एक तो मेरा सपना पूरा हो जाता,
दूसरे लोकतंत्र मेरी और मेरे परिवार की
कठपुतली बन एक फिर से गर्व कर पाता।
तब मैं भी भारत में लोकतंत्र है का
देश दुनिया में खुशी खुशी खूब प्रचार करता।
इसलिए गंभीरता से मेरी सलाह पर अमल करो
बड़े प्यार से सिर्फ एक बार बाखुशी
मुझे प्रधानमंत्री बना दो,
भारत में लोकतंत्र है का पैगाम
सारी दुनिया तक पहुंचा दो,
चंद घंटों के लिए ही सही बस जैसे भी हो
मुझे देश का प्रधानमंत्री बना दो
फिर चाहो तो कुर्सी से कल ही उतार दो।
मुझे भी क्वांरा प्रधानमंत्री बनाकर
लोकतंत्र को बहाल कर दो।
कम से कम पूर्व प्रधानमंत्री कहलाने का
लोकतांत्रिक तो अधिकार दिला दो,
भारत में लोकतंत्र है
हमको ही नहीं दुनिया को भी दिखा दो,
भारत में लोकतंत्र है का सबूत दे दो,
होली पर इतना करके मुझे गले लगा लो
रंग अबीर के साथ प्रधानमंत्री स्वीकार कर लो
होली त्योहार पर सारे गिले शिकवे भुला दो,
मेरी होली भी रंगीन बना दो
भारत में लोकतंत्र है हमें नहीं तो दुनिया को दिखा दो
मेरे आरोपों को ग़लत ठहरा दो।

 

*सुधीर श्रीवास्तव

शिवनगर, इमिलिया गुरूदयाल, बड़गाँव, गोण्डा, उ.प्र.,271002 व्हाट्सएप मो.-8115285921