कविता

चिंता

“करेंगे” यह निश्चित नहीं है पर, “मरेंगे” यह निश्चित है,
फिर क्यों मरने के डर से लगता, हर एक चिंतित है!

चिंता करनी है तो आज की करो, कल कभी होता नहीं,
“जीवन है आज, रहे न रहे” कहता मन, कोई भरोसा नहीं.

मनसा-वाचा-कर्मणा दृढ़ रहकर, सुख-दुःख में सम रहो,
अनमोल पूंजी हैं समय और संकल्प, बचाकर मौज में बहो.

प्रसन्न रहना और प्रसन्न करना है, दुआएं देना और लेना,
इच्छाएं कम-समस्याएं कम गुर को समझ, सबको समझा देना.

जरूरी है सुरक्षा के लिए नम्रता का कवच, अवश्य पहन लेना,
निर्विकारी-निरहंकारी प्रकाशमणि बन, जग को उजास देना.

आसान नहीं है विष पीकर शिव होना, बाद में जीना भी है,
आगे बढ़ने के लिए दुःख के पलों को, साहस से सीना भी है.

मनुष्य अपने भाग्य और समय का, खुद निर्माता होता है,
परचिंतन न कर स्वचिंतन करने वाला, चैन की नींद सोता है.

व्यर्थ संकल्पों और देहाभिमान का त्याग, सबसे बड़ा त्याग है,
जो करना है आज-अभी ही कर लेना, विजय का मधुर राग है.

— लीला तिवानी

*लीला तिवानी

लेखक/रचनाकार: लीला तिवानी। शिक्षा हिंदी में एम.ए., एम.एड.। कई वर्षों से हिंदी अध्यापन के पश्चात रिटायर्ड। दिल्ली राज्य स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर दो शोधपत्र पुरस्कृत। हिंदी-सिंधी भाषा में पुस्तकें प्रकाशित। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। लीला तिवानी 57, बैंक अपार्टमेंट्स, प्लॉट नं. 22, सैक्टर- 4 द्वारका, नई दिल्ली पिन कोड- 110078 मोबाइल- +91 98681 25244