मंजिल
मंजिल को पाना ‘गर चाहे, चलता चल तू बढ़ता चल,
मंजिल को तू पा जाएगा, होगा अगर इरादा अटल.
थकना नहीं है रुकना नहीं है, मंजिल तकती राह तेरी,
जिद-जुनून का सागर बन जा, उठ तू बजा दे रणभेरी.
उमंग और उत्साह से राही, नव ऊर्जा को पाना है,
आशा-साहस-दीपक लेकर, जग रोशन कर जाना है.
मंजिल है अच्छा इंसान बनना, समझ ले इस राज को,
अच्छा इंसान बनकर राही, पहन ले मंजिल के ताज को.
राह का चयन सही किया तो, आसां है मंजिल पर पहुंचना,
चलता चल निश्चयपूर्वक सतत, व्यर्थ नहीं समय गंवाना.
सत्य का पथ सुगम तो नहीं, श्रेष्ठ अवश्य ही होता है,
इस पथ से विमुख जो होता, मान-सम्मान को खोता है.
पग-पग पर देनी होगी परीक्षा, बाधाएं भी आएंगी,
साहस से ‘गर डट जाएगा, राह को रोक न पाएंगी.
मंजिल उन्हें है मिल जाती जो, संकल्पों पर चलते हैं,
अपने हित के साधने के हित, किसी सुजन को न छलते हैं.
जलधि की गहराई में पैठकर ही, मोती-रत्न मिल पाते हैं,
मंजिल के कष्टों से होते, जन्म-जन्म के नाते हैं.
नामुमकिन यहां कुछ भी नहीं है, पक्के अगर इरादे हों,
तिनके-तिनके से बनता आशियां, तूफां कितने आते हों.
मनचाहा लक्ष्य पाने को साहस, मन में अवश्य रखना होगा,
जुट जाए ‘गर पूरी लगन से, पूरा हर सपना होगा
तय करके मंजिल तू अपनी, जोश-होश से चल देना,
संघर्षों और बाधाओं को, साहस से तू कुचल देना.
— लीला तिवानी