नजरिया
जिस नजरिये से जग को देखा है
अक्स वैसा ही तुम्हें दीख जायेगा
पापी को गर साथ तुमने दिया है
पाप तुम्हारे सर पर भी आयेगा
बट वृक्ष की तरू जमी पे उगाया है
छाया की ऑचल में ढँक जायेगा
अच्छे कर्मों की गुलशन का
सौरभ से जीवन भी महक जायेगा
लाख बुराई हीरा में होता है पर
कीमत उसकी तुम ही चुकायेगा
विद्वता की हर एक वाणी पर
सीख दे जग को समझायेगा
माता पिता कितना भी पापी हो
ममता की दौलत तुम पे लुटायेगा
औलादों के लिये माँ पिता
तुम्हारा देवता सम कहलायेगा
ठोकर कितना भी कष्टदायक हो
सबक जरूर दे कर जायेगा
तेरे कुपथ की राह की चाल पर
लगाम वो ही लगा कर जायेगा
पाप तिमिर में भले तुँ निबटा ले
रब से ना कभी बच कर जायेगा
तेरे कर्मों की सजा तुम्हें वो
सबकी नजर में गिरा जायेगा
विद्वान कितना भी गुस्से में हो
लब पे बुरा शब्द ना कभी पायेगा
फूलों के संग कीड़े भी पलते हैं
पर देव के सर चढ़ ही जायेगा
— उदय किशोर साह