कविता
मत सोचो कोई क्या सोचेगा
जिसको जो समझना है ,वो समझेगा!
मत सोचो कोई क्या कहेगा
जिसको जो कहना है ,वो कहेगा!
हर कोई हमें अच्छा समझे
ये संभव तो नहीं होगा!
नजर और नजरिया का फर्क
हर कहीं नजर आएगा!
एक का भला दूसरे का बुरा बन जाएगा
एक का अच्छा दूसरे के लिए खराब हो जाएगा !
चाहे कितना भी संतुलन बना लें
कुछ- न-कुछ असंतुलित रह जाएगा !
चाहे कितना भी कोशिश कर ले
जीवन में कुछ – न-कुछ बाकी रह ही जाएगा !
— विभा कुमारी “नीरजा”