कविता

मैं अदृश्य होना चाहती हूं

दुनिया की भीड़ से बचना चाहती हूं,
लोगों की नजरों से छुपना चाहती हूं,
चेहरे पर मुखौटे हैं सबके यहां,
बड़बोली बोली से बचना चाहती हूं,
मैं अदृश्य होना चाहती हूं।

मुझे पहचानने वाले, मेरी पहचान मिटाने में जुटे है,
मेरे नाम से नाम कमाने वाले, मुझे बदनाम करने में जुटे है,
बड़ा स्नेह हैं सभी को मुझसे यहां,
वक्त बेवक्त मेरा उपहास उड़ाने में जुटे है,
इस दगाबाजी मोहब्बत से भागना चाहती हूं,
मैं अदृश्य होना चाहती हूं।

मेरे आंसुओं को खाड़ा पानी समझते है कुछ लोग,
मेरी हंसी को हांमी समझते है कुछ लोग,
मुझे छूने की चाहत हैं  कइयों को यहां,
उस जहरीली छुअन से बचना चाहती हूं,
मैं अदृश्य होना चाहती हूं।

— शिल्पी कुमारी

शिल्पी कुमारी

जन्म स्थान - पटना, बिहार जन्म तिथि - 05.02. 1990 शिक्षा - स्नातक :_ आर.पी.एस महिला कॉलेज, पटना मगध विश्वविद्यालय , बिहार । चित्र विषारद , प्राचीन कला केंद्र(चंडीगढ़) स्नातकोत्तर :- पटना विश्वविद्यालय, पटना, बिहार। उपलब्धियां _ प्रकाशित पुस्तक- अनंता (काव्य संग्रह) तथा विभिन्न राष्ट्रीय पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशित रचनाएं। संपर्क - डॉ. विवेकानन्द भारती, (वैज्ञानिक आईसीएआर-आरसीईआर, पटना), c/o किरण सिंह, क्षत्रिय रेजीडेंसी , 3rd फ्लोर, फ्लैट नंबर - 302, रोड नंबर - 6A, विजय नगर, रुकनपुरा, पटना- 800014 (बिहार) मोबाइल नंबर - 8709311857 ईमेल_ shilpikhushboo121@gmail.com